तू है आसमा और मैं हूं ज़मीं
तेरा मेरा मिलन होना मुश्किल है।
मैं सागर किनारे पड़ी रेत हूं
मेरी किस्मत में ना कोई साहिल है।
क्यों इल्जाम दें जहां में किसीको
मेरा दिल ही मेरे दिल का कातिल है।
वो ना सही उनके गम तो मिले हैं
उनकी यादों का हक हमको हासिल है।
तेरे दर पे हम फूल लाए थे लेकिन
सुना यह अमीरों की महफिल है।
बहुत दर्द जानिब हुआ हाथ छूटा
के जुदा आज से अपनी मंजिल है।
-पावनी दीक्षित "जानिब"
सीतापुर
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 6.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeletehttps://charchamanch.blogspot.com
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
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