Tuesday, December 24, 2019

बुढ़ापा....अनुराधा चौहान

बीता बचपन आई जवानी
ढलती रही उम्र वक़्त के साथ
बुढ़ापे ने भी दे दी दस्तक
भागता रहा समय का चक्र
ये क्षणभंगुर जीवन के पल
यह भी ढल जाएंगे ढलते-ढलते
बस यादें ही हैं खट्टी-मीठी
जिनके संग अब ज़िंदगी बीते
तजुर्बोे की पोटली से निकले
इस क्षणभंगुर जीवन का सार
आँखो की कमजोर रोशनी
रुखा होता अपनों का व्यवहार
बुढ़ापा होता जीवन पर भारी
आश्रित जीवन बना लाचारी
कम होता बच्चों का प्यार
कैसा है ये उमर का पड़ाव
बिखरती आशाएं दम तोड़ते सपने
झुर्रियों के जाल में फंसा मन
ढलती उम्र जीने की माया
कमजोर मन निर्बल होती काया
आँखो में घूमता अतीत का साया
बुढ़ापे ने दी जब से जीवन में दस्तक
खत्म हुआ रौब, शान-शौकत
जीवन की मीठी यादों में
अब यह जीवन बीत रहा !!




6 comments:

  1. वाह, बड़ी सुंदरता से आपने बुढ़ापे की लकीरों को उकेरा है।बहुत बढ़िया अनु जी।

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  2. इस क्षणभंगुर जीवन का सार
    आँखो की कमजोर रोशनी
    रुखा होता अपनों का व्यवहार
    बुढ़ापा होता जीवन पर भारी
    आश्रित जीवन बना लाचारी
    बहुत ही सुन्दर सार्थक..

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  4. सुन्दर रचना

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  5. बुढ़ापा होता जीवन पर भारी
    आश्रित जीवन बना लाचारी
    बहुत ही सुन्दर

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