सोंधी खुशबू
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शब्द गुमसुम हों तो क्या...।
हँसी की धूप दिखाओ ...
जितनी भी ...।
दर्द बरसेगा जब भी
मन के आँगन में...
हवा में होगी
उसकी सोंधी खुशबू...।।
नियति
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जानती हूँ
पहचानती भी हूँ
’नियति’
फिर भी ...
शब्दों का लबादा ओढ़े
वह...।
जल्लाद सी नज़र आती है ।।
दिल की बातें
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आओ बैठें
कुछ अधलेटे कुछ उन्नीदे से
दिल की हरी नर्म ज़मीन पर....
सहलाएँ...नोचें...बिखराएँ ...फैलाएँ और उड़ाएँ
भावनाओं और संवेदनाओं की दूब...
बातें करें कुछ बिखरी बिखरी फैली बेतरतीब सी...
वैसी ही जैसी होती हैं बातें....
दिल से दिल के करीब की.....
बहाना
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मत कुरेदो ...
बहुत कुछ होगा अनावृत ...
बहुत कुछ ऐसा
जो है
अनपेक्षित... , असहनीय..., अशोभनीय ...,
है मेरे भी भीतर
क्योंकि
मेरे पास भी
है बहाना
इंसान होने का ।।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-01-2018) को "आओ कुत्ता हो जायें और घर में रहें" चर्चामंच 2844 पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर रचना है जी
ReplyDeleteसुंदर...मन को भा गई
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