इक रोज़ कज़ा आएगी, इंकार नहीं है
ए मौत मगर तेरा कोई यार नहीं है
खुशरंग घटा, फूल, परिंदे, नदी, बादल
क़ुदरत की तरह कोई भी फनकार नहीं है
मेरी ही तरह डरता है वो ज़ात से अपनी
मेरी ही तरह वो भी गुनहगार नहीं है
आँखों में बसा है मेरी इक ख्वाब पुराना
जा नींद, मुझे आज तू दरकार नहीं है
हर गीत मेरा इक नई आशा की किरण सा
हारे हुए लफ़्ज़ों का ये अम्बार नहीं है
- श्रद्धा जैन
वाह्
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