बेचारियों के मन सदा क्योंकर दुखाओ तुम
फूलों पे बैठी तितलियों को क्यों उड़ाओ तुम
रहने दो मन को फूल सा ऐ मेरे हमसफ़र
पत्थर की तरह क्यों उसे पत्थर बनाओ तुम
कड़वे फलों के पेड़ों की भी हैं ज़रूरतें
मीठे फलों के पेड़ों को चाहे लगाओ तुम
गंगा का साफ़ पानी है पीने के वास्ते
क्यों मैल अपने जिस्म की उसमें मिलाओ तुम
मन में बसाये बैठे हो बचपन से प्यार को
अब प्यार की जगह पे घृणा क्यों बसाओ तुम
वो झुक के तुमको रोज़ ही सिर पर बिठाता है
ऐ `प्राण` कभी तो उसे सिर पर बिठाओ तुम
-प्राण शर्मा
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