बहुत कुछ ज़िन्दगी चेहरे पे लिक्खा छोड़ जाती है
कि आंधी जैसे कोई गाँव उजड़ा छोड़ जाती है
तुम इन रंगीनियों के बाद का भी सोचकर रखना
हो कितनी खूबसूरत शाम अँधेरा छोड़ जाती है
कई शाहों के सर सजदे में झुकते हैं मज़ारों पर
फ़क़ीरी जाते जाते भी ये रूतबा छोड़ जाती है
तो फिर क्यूँ चहचहाहट बोझ लगती है ज़माने को
विदा के वक़्त तिनके तक तो चिड़िया छोड़ जाती है
हुनर को वक़्त लगता है बहुत मायूस होने में
यूँ ही थोड़ी कोई मजबूरी क़स्बा छोड़ जाती है
नहीं कोई और ही होगा वो औरत के लिबादे में
कभी माँ भी सड़क पर अपना बच्चा छोड़ जाती है
महज़ कह देने से क्या वक़्त सब ज़ख्मों को भर देगा
तवाइफ़ उम्र ढलने पर क्या कोठा छोड़ जाती है
मज़ा तो तब है कोई खुद को ही जब छोड़ कर जाए
ये गाडी, घर, ज़मीं, दौलत तो दुनिया छोड़ जाती है
(नए मरासिम में प्रकाशित)
-सचिन अग्रवाल
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहुनर को वक़्त लगता है बहुत मायूस होने में
ReplyDeleteयूँ ही थोड़ी कोई मजबूरी क़स्बा छोड़ जाती है
नहीं कोई और ही होगा वो औरत के लिबादे में
कभी माँ भी सड़क पर अपना बच्चा छोड़ जाती है
..मर्मस्पर्शी रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-07-2015) को "घिर-घिर बादल आये रे" (चर्चा अंक- 2027) (चर्चा अंक- 2027) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
sundar.
ReplyDeleteसुन्दर..बधाई।
ReplyDeleteकई शाहों के सर सजदे में झुकते हैं मज़ारों पर
ReplyDeleteफ़क़ीरी जाते जाते भी ये रूतबा छोड़ जाती है ..
बहुत ही लाजवाब ... दिली दाद निकलती है इस शेर पर ... जोरदार ग़ज़ल ...
बहुत सुंदर ...हुनर को वक़्त लगता है बहुत मायूस होने में
ReplyDeleteयूँ ही थोड़ी कोई मजबूरी क़स्बा छोड़ जाती है