नंगे पाँव चलते हुये
जंगल की पथरीली धरती पर
उलीक दिये कुछ पद चिन्ह
जो बन गये रास्ते
पीछे आने वालों के लिये
समय के साथ
चलते हुये जब से
सीख लिया उसने
कंक्रीट की सडकों पर चलना
तेज़ हो गयी उसकी रफ्तार
संभल कर, देख कर चलने की,
जमीं की अडचने, दुश्वारियाँ. काँटे कंकर
देखने की शायद जरूरत नही रही शायद
जमी पर पाँव टिका कर चलने का
शायद समय नहीं उसके पास
तभी तो वो अब
उलीच नही पाता
अपने पीछे कोई पद चिन्ह
नहीं छोड पाता अपनी पीढी के लिये
अपने कदमों के निशान
– निर्मला कपिला
...... बड़ी दीदी के ब्लाग से
http://www.hopesmagazine.in/?p=7484
जमी पर पाँव टिका कर चलने का
ReplyDeleteशायद समय नहीं उसके पास...निर्मला जी ने पूरा सच उधेड़ कर रख दिया है... बहुत खूब...