Friday, October 27, 2017

कैसी ज़िन्दगी? ....डॉ. जेन्नी शबनम


1. 
हाल बेहाल 
मन में है मलाल 
कैसी ज़िन्दगी? 
जहाँ धूप न छाँव 
न तो अपना गाँव! 

2. 
ज़िन्दगी होती 
हरसिंगार फूल, 
रात खिलती 
सुबह झर जाती, 
ज़िन्दगी फूल होती! 

3. 
बोझिल मन 
भीड़ भरा जंगल 
ज़िन्दगी गुम, 
है छटपटाहट 
सर्वत्र कोलाहल!

4. 
दीवार गूँगी 
सारा भेद जानती, 
कैसे सुनाती? 
ज़िन्दगी है तमाशा 
दीवार जाने भाषा!

5. 
कैसी पहेली? 
ज़िन्दगी बीत रही 
बिना सहेली, 
कभी-कभी डरती 
ख़ामोशियाँ डरातीं ! 

6. 
चलती रही 
उबड-खाबड़ में 
हठी ज़िन्दगी, 
ख़ुद में ही उलझी 
निराली ये ज़िन्दगी! 

7. 
फुफकारती 
नाग बन डराती 
बाधाएँ सभी, 
मगर रूकी नहीं, 
डरी नहीं, ज़िन्दगी! 

8. 
थम भी जाओ, 
ज़िन्दगी झुँझलाती 
और कितना? 
कोई मंज़िल नहीं 
फिर सफ़र कैसा? 

9. 
कैसा ये फ़र्ज़ 
निभाती है ज़िन्दगी 
साँसों का क़र्ज़, 
गुस्साती है ज़िन्दगी 
जाने कैसा है मर्ज़! 

10. 
चीख़ती रही 
बिलबिलाती रही 
ज़िन्दगी ख़त्म, 
लहू बिखरा पड़ा 
बलि पे जश्न मना!
-डॉ. जेन्नी शबनम

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-10-2017) को
    "ज़िन्दगी इक खूबसूरत ख़्वाब है" (चर्चा अंक 2771)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, देश के सब से बड़े अनशन सत्याग्रही को ब्लॉग बुलेटिन का नमन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. सुंदर प्रस्तुति।

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