Tuesday, October 24, 2017

आज से प्रारम्भ विश्व प्रसिद्ध छठ पूजा


बिहार के औरंगाबाद जिले का देव सूर्य मंदिर सूर्योपासना के लिए सदियों से आस्था का केंद्र बना हुआ है। ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से विश्व प्रसिद्ध त्रेतायुगीन इस मंदिर परिसर में प्रति वर्ष चैत्र और कार्तिक माह में महापर्व छठ व्रत करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ती है।

पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर की अभूतपूर्व स्थापत्य कला इसकी कलात्मक भव्यता दर्शाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से किया। काले और भूरे पत्थरों से निर्मित मंदिर की बनावट उड़ीसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से मिलती-जुलती है।
मंदिर के निर्माणकाल के संबंध में मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख के मुताबिक, 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला पुत्र ऐल ने देव सूर्य मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया था। शिलालेख से पता चलता है कि इस पौराणिक मंदिर का निर्माण काल एक लाख पचास हजार वर्ष से ज्यादा हो गया है।
देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल, मध्याचल और अस्ताचल सूर्य के रूप में विद्यमान हैं। पूरे भारत में सूर्य देव का यही एक मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। इस मंदिर परिसर में दर्जनों प्रतिमाएं हैं। मंदिर में शिव की जांघ पर बैठी पार्वती की दुर्लभ प्रतिमा है।
करीब एक सौ फीट ऊंचा यह सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। बिना सीमेंट के प्रयोग किए आयताकार, वर्गाकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों में काटे गए पत्थरों को जोड़कर बनाया गया। यह मंदिर अत्यंत आकर्षक है।
देव सूर्य मंदिर दो भागों में बना है। पहला गर्भ गृह जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और शिखर के ऊपर सोने का कलश है। दूसरा भाग मुखमंडप है, जिसके ऊपर पिरामिडनुमा छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का बना स्तंभ है।

तमाम हिंदू मंदिरों के विपरीत पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर ‘देवार्क’ माना जाता है जो श्रद्धालुओं के लिए सबसे ज्यादा फलदायी एवं मनोकामना पूर्ण करने वाला है। जनश्रुतियों के आधार पर इस मंदिर के निर्माण के संबंध में कई किंवदतियां प्रसिद्ध हैं, जिससे मंदिर के अति प्राचीन होने का स्पष्ट पता तो चलता है, लेकिन इसके निर्माण के संबंध में अब भी भ्रामक स्थिति बनी हुई है।

सर्वाधिक प्रचारित जनश्रुति के अनुसार, ऐल एक राजा थे, जो श्वेत कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। एक बार शिकार करने देव के वनप्रांत में पहुंचने के बाद राह भटक गए। राह भटकते भूखे-प्यासे राजा को एक छोटा सा सरोवर दिखाई पड़ा, जिसके किनारे वे पानी पीने गए और अंजलि में भरकर पानी पिया।

पानी पीने के क्रम में वह यह देखकर घोर आश्चर्य में पड़ गए कि उनके शरीर के जिन जगहों पर पानी का स्पर्श हुआ, उन जगहों के श्वेत कुष्ठ के दाग चले गए। शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन देख प्रसन्नचित राजा ऐल ने यहां एक मंदिर और सूर्य कुंड का निर्माण करवाया था।
भगवान भास्कर का यह मंदिर सदियों से लोगों को मनोवांछित फल देनेवाला पवित्र धर्मस्थल है। ऐसे यहां सालभर देश के विभिन्न जगहों से लोग आकर मन्न्त मांगते हैं और सूर्य देव द्वारा इसकी पूर्ति होने पर अर्घ्य देने आते हैं। छठ पर्व के दौरान यहां लाखों लोग जुटते हैं।
उल्लेखनीय है कि यहां छठ पर्व करने आने वाले लोगों में न केवल बिहार और झारखंड के लोग होते हैं। बल्कि बिहार के आस-पास के राज्यों के लोगों के साथ विदेशों से भी लोग यहां सूर्योपासना के लिए पहुंचते हैं।

7 comments:

  1. छठ पर्व की हार्दिक शुभ‎ कामनाएँ . बहुत अच्छी जानकारी‎ वाले लेख हेतु आभार .

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  2. बहुत ही सुन्दर, ज्ञान वर्धक.....
    छठ पर्व कघ शुभकामनाएं ।

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  3. वाह्ह्ह...दी बहुत सुंदर जानकारी।
    आभार
    सादर।


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  4. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/10/41.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  5. आदरणीय यशोदा दीदी -- और सूर्य उपासना के देव सूर्य मंदिर पर बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी दी आपने | बिहार से बाहर वालों के लिए बिहार का छठ पर्व बहुत कौतुहल भरा है | इस की विहगम सूर्य -- उपासना बहुत ही मनमोहक है | और प्रसिद्ध मंदि रों में इस पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है | इस मंदिर के इतिहास और निर्माण कला के बारे जानकर बहुत अच्छा लगा | सभी चित्र मनमोहक हैं | इस सुंदर सार्थक लेख के लिए आपका कोटिश आभार | सादर सस्नेह ----------

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  6. छठ पूजा पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता आपका आलेख शोधपरक और ज्ञानवर्धक है।
    बिखरी पड़ी जानकारी को एक स्थान पर पाकर पाठक का मन प्रसन्न हो जाता है।
    आपकी क़लमकारी के रंग देखना चाहती है दुनिया।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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  7. वाह ! बहुत ही खूबसूरत जानकारी से भरा यह लेख ! बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया । बहुत खूब ।

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