1890-1960
अब तो ये भी नहीं रहा एहसास
दर्द होता है या नहीं होता
इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा
आदमी काम का नहीं होता
टूट पड़ता है दफ़अ'तन जो इश्क़
बेश-तर देर-पा नहीं होता
वो भी होता है एक वक़्त कि जब
मा-सिवा मा-सिवा नहीं होता
हाए क्या हो गया तबीअ'त को
ग़म भी राहत-फ़ज़ा नहीं होता
दिल हमारा है या तुम्हारा है
हम से ये फ़ैसला नहीं होता
जिस पे तेरी नज़र नहीं होती
उस की जानिब ख़ुदा नहीं होता
मैं कि बे-ज़ार उम्र भर के लिए
दिल कि दम-भर जुदा नहीं होता
वो हमारे क़रीब होते हैं
जब हमारा पता नहीं होता
दिल को क्या क्या सुकून होता है
जब कोई आसरा नहीं होता
हो के इक बार सामना उन से
फिर कभी सामना नहीं होता
-जिगर मुरादाबादी
सुन्दर चयन।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-10-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2748 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 05-10-2017 को प्रकाशनार्थ 811 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
ReplyDeleteबहुते खूब
ReplyDeleteवाह ! ,बेजोड़ पंक्तियाँ ,सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार।
ReplyDeletesahi waqt par pahuncha di gazal. shukriya .
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