हुआ सवेरा हमें आफ़ताब मिल ही गया
अँधेरी शब को करारा जवाब मिल ही गया
अगरचे हो गयीं काँटों से उंगलियाँ ज़ख़्मी
मगर मुझे वो महकता गुलाब मिल ही गया
हवा ने डाल दिया गेसुओं को चेहरे पर
हसीन रूख़ को तुम्हारे नक़ाब मिल ही गया
तुझे भी बावली कहने लगी है ये दुनिया
मुझे भी अहले-जुनूँ का खिताब मिल ही गया
लो ख़त्म हो गया उजडे़ मंज़रो का सफ़र
उदास आँखों को मनचाहा ख़्वाब मिल ही गया
बढ़ा के हाथ अचानक पलट गया साक़ी
मैं मुतमइन था कि जामे-शराब मिल ही गया
चमकती धूप में समझे हैं काँच के टुकड़े
कि मोतियों सा उन्हें आबो ताब मिल ही गया
पिला रहा है तो दिल से पिलाये जा साक़ी
न कर गुरूर जो कारे-सवाब मिल ही गया
बहुत ही बच के निकलता है वो ‘अकेला’ से
करेगा क्या, जो ये ख़ानाख़राब मिल ही गया
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteचमकती धूप में समझे हैं काँच के टुकड़े
ReplyDeleteकि मोतियों का उन्हें आबोताब मिल गया ।
वाह !!!बहुत सुंदर पंंक्तियाँ...
बहुत सुंदर पंंक्तियाँ
ReplyDeleteगहरे अंधकार के बाद उजाला होता ही है !
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