Saturday, October 14, 2017

मिट्टी के घरोंदे है, लहरों को भी आना है......मनोज सिंह”मन”

मिट्टी के घरोंदे है, लहरों को भी आना है,
ख्बाबों की बस्ती है, एक दिन उजड़ जाना है,

टूटी हुई कश्ती है, दरिया पे ठिकाना है,
उम्मीदों का सहारा है,इक दिन चले जाना है,

बदला हुआ वक़्त है, ज़ालिम ज़माना है,
यंहा मतलबी रिश्ते है, फिर भी निभाना है,

वो नाकाम मोहब्बत थी, अंजाम बताना है,
इन अश्कों को छुपाना है, गज़ले भी सुनाना है,

इस महफ़िल में सबको, अपना ही माना है,
“मन” कैसा है दोस्तों, ये आपको ही बताना है,


8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-10-2017) को
    "मिट्टी के ही दिये जलाना" (चर्चा अंक 2758)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, दुर्गा भाभी की १८ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार १६ अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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  4. टूटी हुयी कश्ती है, दरिया पर ठिकाना है
    उम्मीदों का सहारा है एक दिन चले
    जाना है । बहुत खूब

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  5. वाह ! सुंदर गजल

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