Friday, October 20, 2017

हमेशा हाथ ही मलता रहा......अनिरुद्ध सिन्हा

धूप को सर पर लिये  चलता रहा
मैं ज़मीं के साथ  ही जलता रहा

नफ़रतों के  जहर पीकर  दोस्तो
प्यार के साँचे में मैं  ढलता रहा

टूटकर इक दिन बिखर जाऊँगा मैं
मेरे अन्दर  खौफ़ ये  पलता रहा

लौट आया आसमां को  छूके  मैं
जलनेवाला उम्र- भर जलता  रहा

लोग अपनी मंज़िलों को  हो लिये
वो  हमेशा  हाथ  ही मलता रहा

-अनिरुद्ध सिन्हा
गुलज़ार पोखर, मुंगेर (बिहार )811201
Email-anirudhsinhamunger@gmail.com
Mobile-09430450098  

6 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-10-2017) को
    "भाईदूज के अवसर पर" (चर्चा अंक 2764)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. वाह!!!
    कर्मठ आसमान छू आते हैं अकर्मणीय बैठे बैठे ईर्ष्या करते हैं हाथ मलते रह जाते हैं....
    लाजवाब प्रस्तुति।

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