न इब्तिदा की खबर है, न इंतेहा मालूम
रहा ये वहम कि हम हैं, सो ये भी क्या मालूम!
हर नफ़्स, उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मैयत फानी
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिए जाने का
मौत आने तक न आये, अब जो आए हो तो हाय
ज़िन्दगी मुश्किल ही थी, मरना भी मुश्किल हो गया
दिल-ए-मरहूम को खुदा बख्शे
एक ही ग़म-गुसार था, न रहा
एक मोअम्मा है, समझने का न समझाने का
ज़िन्दगी काहे को है ख्वाब है दीवाने का
-फानी बदायूनी
बहुत ही उम्दा
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