'लोहड़ी' 'पोंगल' जा चुके
गई मकर संक्रान्ति।
सूर्य उत्तरायण हुए,
होगी शीत समाप्ति।।
नूतन किसलय बांचती,
परिवर्तन का मंत्र।
कण-कण, तृण-तृण छा रहा,
है ऋतुराज वसंत।।
गेंदे और गुलाब भी,
शिशुओं सो मुस्काए।
किंशुक तरु आतुर खड़ा,
सौ आरती सजाए।।
पशु-पक्षी हर्षित हुए,
आया देख वसंत।
पीली सरसों खिल उठी,
'केकी' हृदय उमंग।।
रंग-बिरंगी तितलियां,
उड़ती है स्वच्छंद।
पागल-प्रेमी भ्रमर भी,
लूट रहे मकरंद।।
बौराए से आम हैं,
कोयल छेड़े तान।
मदमाते महुए झरे,
मन बिकता बेदाम।।
सोने सी बाली पकी,
हर्षित हुआ किसान।
'बेटी ब्याही जाएगी',
मन में है अरमान।।
'बीहू' 'बैसाखी' मनी,
'रबी' फसल के पर्व।
मन 'अनंग' संग गा रहै,
है सबके मन का गर्व।।
मन फागुन-फागुन होगा,
आएगा 'होली' का त्योहार।
सतरंगे रंग बरसेंगे
हर आंगन हर द्वार।।
-इन्दु पाराशर
बढ़िया ।
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