दुर्बल-निर्बल जेठे-स्याने,
वृद्धाश्रम में रहते क्यों हैं?
दूर हुए क्यों परिवारों से,
दु:ख तकलीफें सहते क्यों हैं?
इनके बेटे, पोते, नाती,
घर में पड़े ऐश करते हैं,
और जमाने की तकलीफें,
ये बेचारे सहते क्यों हैं?
इन सबने बच्चों को पाला,
यथायोग्य शिक्षा दी है,
ये मजबूत किले थे घर के,
टूट-टूट अब ढहते क्यों हैं?
इसका उत्तर सीधा-सादा,
पश्चिम का भारत आना है,
पश्चिम ने तो मात-पिता को,
केवल एक वस्तु माना है।
चीज पुरानी हो जाने पर,
उसको बाहर कर देते हैं,
इसी तरह से मात-पिता को,
वृद्धाश्रम में धर देते हैं।
-प्रभुदयाल श्रीवास्तव
एकदम सही कहा आपने , आज जमानें का यही चलन हुआ है ,आज की पीढी़ की दुनियाँ सिमट सी गई
ReplyDeleteहै। मार्मिक रचना ।
सटीक।
ReplyDeleteबहुत सटीक
ReplyDeleteसामाजिक बिडम्बना की मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ..
ReplyDeleteपाश्चात्य संस्कृति का असर इस कदर बढ गया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।