खुशबू भरी बयार बही है बसंत में
फूलों की ख़ूब धूम मची है बसंत में
फूलों के जेवरों से सजी है बसंत में
हर वाटिका दुल्हन सी बनी है बसंत में
आओ चलें बगीचे में कुछ वक़्त के लिए
क्या गुनगुनी सी धूप खिली है बसंत में
उस शोखी का जवाब नहीं दोस्तो कहीं
जिस शोखी में पतंग उड़ी है बसंत में
कम्बल,रजाइयों की ज़रुरत नहीं रही
सर्दी की लहर लौट गई है बसंत में
कण-कण धरा का आज हुआ स्वर्ण की तरह
ये किसकी `प्राण` जादूगरी है बसंत में
-प्राण शर्मा
बसंत को महसूस कराती सुन्दर रचना. आज जब जीवन की गतिविधियाँ सिमटती जा रहीं और घर से बाहर कब आया बसंत कब चला गया बसंत की स्थिति में लोग जीने के आदी होते जा रहे हैं तब बसंत के प्रति अनुराग और भाव जगाने के लिये कविता से अच्छा माध्यम क्या हो सकता है.
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