पीत पीत हुए पात
सिकुड़ी-सिकुड़ी-सी रात
ठिठुरन का अन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।
मादक सुगन्ध से भरी
पन्थ पन्थ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक कूक कर
इतराती फिरै बावरी
जाती है जहाँ दृष्टि
मनहारी सकल स्रष्टि
लास्य दिग्दिगन्त छा गया
देखो बसन्त आ गया।
शीशम के तारुण्य का
आलिंगन करती लता
रस का अनुरागी भ्रमर
कलियों का पूछता पता
सिमटी-सी खड़ी भला
सकुचायी शकुन्तला
मानो दुष्यन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।
पर्वत का ऊँचा शिखर
ओढ़े है किंशुकी सुमन
सरसों के फूलों भरा
बासन्ती मादक उपवन
करने कामाग्नि दहन
केशरिया वस्त्र पहन
मानों कोई सन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।।
-शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
श्री विनय भाई को आभार
रचनाकार व ब्लॉग दोनों का समाधान किया
श्री विनय भाई को आभार
रचनाकार व ब्लॉग दोनों का समाधान किया
यह सुन्दर रचना शास्त्री नित्य गोपाल कटारे जी की है,जिसे इस लिंक पर देखा जा सकता है।
ReplyDeletehttp://googleweblight.com/?lite_url=http://navgeetkipathshala.blogspot.com/2010/02/blog-post_14.html?m%3D1&ei=7gpiLaC8&lc=en-IN&s=1&m=53&host=www.google.co.in&ts=1486052707&sig=AJsQQ1ASODqExzJh3AmKkPVh6mDSs5sqrg
आभार भाई विनय जी
Deleteसादर
कविता का शीर्षक है : " देखो बसन्त आ गया"
ReplyDeleteजो नवगीत की पाठशाला ब्लॉगपोस्ट पर है।
सुन्दर ।
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