रूप तेरा देख ,चाँद दीवाना हो रहा
कजरारी रात में ,पूनम सा जगमगा गया
सुर्ख लाल लब तेरे ,कोई गज़ल कह रहे
झील में जैसे दो कमल खिल गया
मुखडा चाँद सा तेरा,देख आईना शरमा रहा
सोचता है आज किसी अप्सरा से रूबरू हो गया
यौवन तेरा देख , कवि कल्पना में खो रहा
लिख रहा था नज़्म, शब्द निशब्द हो गया
घूंघट हटा ना मुखड़े से, रूप कनक सा चमक रहा
बावला मन मेरा "प्रेम" में तेरे सम्मोहित हो गया
--नीलू शर्मा
मेरी फेसबुक मित्र
प्यार भरी लेखनी
ReplyDeleteआभार अंजू बहन
Deleteलिख रहा था नज़्म, शब्द निशब्द हो गया
ReplyDeleteसुन्दर रचना, पर फोटो ज्यादा सुन्दर
शुक्रिया राहुल
Deleteलिख रहा था नज़्म ,शब्द -निशब्द हो गया -बहुत खूब
ReplyDeleteलिख रहा था नज़्म ,शब्द -निशब्द हो गया -बहुत खूब
शुक्रिया पूनम बहन
Deleteबहुत ही दिलकश..|
ReplyDeleteधन्यवाद मन्टू भाई
Deletesunder rachana hai ,yadi islaah aur protsaahan mile to ek achha kavi milne ki prabal sambhaavnaaye hai
ReplyDeleteयशोदा दी आपका भी जवाब नहीं कहाँ -कहाँ से ढूंढ़ कर लाती हैं, सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteप्यारभरी रचना..
:-)
खूबसूरत रचना
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