गीली ओंस बूंद.....स्मृति जोशी "फल्गुनी"
सूखी हुई टहनी पर
टंगी
गीली ओंस बूंद की तरह,
टंगी है
मेरी उम्मीद की
थरथराती अश्रु-बूंद
तुम्हारे जवाब के इंतजार में,
धवल चांदनी गुजर गई
और ठिठक गई है भोर,
कांप रही है अब भी
मेरी आशा की डोर,
आदित्य-रश्मियों से
जगमगा उठी नाजुक ओंस बूंद,
लगा जैसे नाच उठा
लरजती आस का नीला मोर..
--स्मृति जोशी "फल्गुनी"
आह.....
ReplyDeleteकांप रही है अब भी
मेरी आशा की डोर
बेहद ही उम्दा....
शुभ प्रभात राहुल भाई
Deleteधवल चांदनी गुजर गई
ReplyDeleteऔर ठिठक गई है भोर,
कांप रही है अब भी
मेरी आशा की डोर,
बहुत बढ़िया
आभार दीदी
Deleteवाह यशोदा जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDeleteधन्यवाद भाई पंकज जी
Deleteशब्दशिल्प बेहतरीन है
ReplyDeleteसादर
भाई
Deleteवन्दन
कैसै हैं आप
दिल से जो भी मांगोगे वह ही मिलेगा, ये गणेश जी का दरबार है,
ReplyDeleteदेवों के देव वक्रतुंडा महाकाया को अपने हर भक्त से प्यार है..
बोलो गणेश भगवान की जय ..
मेरी ओर से आपको एवं आपके परिवार के सदस्यों को श्री गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर सब को शुभ कामनाएं और प्रार्थना करता हूँ कि गणपति सब के मनोरथ सिद्ध करें एवं सबको बुद्धि, विद्या ओर बल प्रदान कर आप की चिंताएं दूर करें.....आप सबका सवाई सिंह आगरा
आप सभी को गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाएं..सुगना फाउण्डेशन मेघलासियां
आभार भाई सवाई सिंह जी
Deleteविघ्नहर्ता सबके दुःख हरे
आदित्य-रश्मियों से
ReplyDeleteजगमगा उठी नाजुक ओंस बूंद,
लगा जैसे नाच उठा
लरजती आस का नीला मोर..
सुंदर रचना |
मेरी नई पोस्ट:-
मेरा काव्य-पिटारा:बुलाया करो
आभार भाई प्रदीप जी
Deleteआपका रचनाएँ पसंद आई मुझे
बहुत बढ़िया जी
ReplyDeleteआभार उपासना बहन
Deleteसूखी हुई टहनी पर
ReplyDeleteटंगी
गीली ओंस बूंद की तरह,
टंगी है
मेरी उम्मीद की
थरथराती अश्रु-बूंद
तुम्हारे जवाब के इंतजार में...
मन को भीतर तक भिंगों गई पंक्तियाँ...बधाई
धन्यवाद आप दोनों को
Deleteपोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
oos bund yun jagmaga uthe~ ke indrdhanushi sapt rang bikhar gaye /
ReplyDeleteghazb ki kavita...