Monday, September 17, 2012

गीली ओंस बूंद.....स्मृति जोशी "फल्गुनी"

सूखी हुई टहनी पर
टंगी
गीली ओंस बूंद की तरह,
टंगी है
मेरी उम्मीद की
थरथराती अश्रु-बूंद
तुम्हारे जवाब के इंतजार में,

धवल चांदनी गुजर गई
और ठिठक गई है भोर,
कांप रही है अब भी
मेरी आशा की डोर,

आदित्य-रश्मियों से
जगमगा उठी नाजुक ओंस बूंद,
लगा जैसे नाच उठा
लरजती आस का नीला मोर.. 



--स्मृति जोशी "फल्गुनी"

18 comments:

  1. आह.....
    कांप रही है अब भी
    मेरी आशा की डोर
    बेहद ही उम्दा....



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    1. शुभ प्रभात राहुल भाई

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  2. धवल चांदनी गुजर गई
    और ठिठक गई है भोर,
    कांप रही है अब भी
    मेरी आशा की डोर,

    बहुत बढ़िया

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  3. वाह यशोदा जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति....

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    1. धन्यवाद भाई पंकज जी

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  4. शब्दशिल्प बेहतरीन है


    सादर

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    1. भाई
      वन्दन
      कैसै हैं आप

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  5. दिल से जो भी मांगोगे वह ही मिलेगा, ये गणेश जी का दरबार है,
    देवों के देव वक्रतुंडा महाकाया को अपने हर भक्त से प्यार है..
    बोलो गणेश भगवान की जय ..
    मेरी ओर से आपको एवं आपके परिवार के सदस्यों को श्री गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर सब को शुभ कामनाएं और प्रार्थना करता हूँ कि गणपति सब के मनोरथ सिद्ध करें एवं सबको बुद्धि, विद्या ओर बल प्रदान कर आप की चिंताएं दूर करें.....आप सबका सवाई सिंह आगरा

    आप सभी को गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाएं..सुगना फाउण्डेशन मेघलासियां

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    1. आभार भाई सवाई सिंह जी
      विघ्नहर्ता सबके दुःख हरे

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  6. आदित्य-रश्मियों से
    जगमगा उठी नाजुक ओंस बूंद,
    लगा जैसे नाच उठा
    लरजती आस का नीला मोर..

    सुंदर रचना |
    मेरी नई पोस्ट:-
    मेरा काव्य-पिटारा:बुलाया करो

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    1. आभार भाई प्रदीप जी
      आपका रचनाएँ पसंद आई मुझे

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  7. बहुत बढ़िया जी

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  8. सूखी हुई टहनी पर
    टंगी
    गीली ओंस बूंद की तरह,
    टंगी है
    मेरी उम्मीद की
    थरथराती अश्रु-बूंद
    तुम्हारे जवाब के इंतजार में...


    मन को भीतर तक भिंगों गई पंक्तियाँ...बधाई

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    1. धन्यवाद आप दोनों को

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  9. पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
    और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  10. oos bund yun jagmaga uthe~ ke indrdhanushi sapt rang bikhar gaye /
    ghazb ki kavita...

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