कैसे उग आए कांटे
तुम्हारी उस जुबान पर
जिस पर थमा रहता था
मेरे नाम का मधुर शहद,
ठंडे झरने की तरह मेरे गुस्से पर
झर-झर बरसने वाले तुम,
कैसे हो गए अचानक
तड़ातड़ पड़ते अंधड़ थपेड़े की तरह,
रिश्तों के रेगिस्तान में
मैंने तुमसे पाई
कितनी सुखद मीठी छांव,
और तुमने तपती गर्म रेत-से शब्दों से
कैसे छलनी कर देने वाले
किए वार,
बार-बार,
हर बार
....बस हो गया प्यार?
--स्मृति जोशी "फाल्गुनी"
तुम्हारी उस जुबान पर
जिस पर थमा रहता था
मेरे नाम का मधुर शहद,
ठंडे झरने की तरह मेरे गुस्से पर
झर-झर बरसने वाले तुम,
कैसे हो गए अचानक
तड़ातड़ पड़ते अंधड़ थपेड़े की तरह,
रिश्तों के रेगिस्तान में
मैंने तुमसे पाई
कितनी सुखद मीठी छांव,
और तुमने तपती गर्म रेत-से शब्दों से
कैसे छलनी कर देने वाले
किए वार,
बार-बार,
हर बार
....बस हो गया प्यार?
--स्मृति जोशी "फाल्गुनी"
और तुमने तपती गर्म रेत-से शब्दों से
ReplyDeleteकैसे छलनी कर देने वाले
किए वार,
बार-बार,
हर बार
....बस हो गया प्यार?
बहुत ही उम्दा .....
शुक्रिया राहुल भाई
Deleteबेहद सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteआभार प्रकाश भाई आपको पसंद आई मेरी पसंद
Deleteकाँटों के बिना फूल भी सुंदर नहीं लगते न .... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार दीदी
Deleteअगली पोस्ट स्मृति दीदी के फोटो के साथ
आभार दीदी
ReplyDeleteशनिवार को नई पोस्ट
देखियेगा अवश्य
वाह...बहुत सुंदर..
ReplyDeleteआभार दीदी
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