दूर रहना था तो , दूर रहता क्यों नही कोई,
जाने के लिए दूर, क्यों कोई करीब आता है।
उसे धडकनों की तरह, बसाया था दिल में,
भूल जाये भले कोई, हमे सब याद आता है।
दिल का दर्द कितना सहे, अब ये आंखे भी,
अश्क बनकर आँखों से, बाहर ही आता है ।
बहुत की कोशिशे, दर्द-ए-ज़ुदाई भुलाने की,
ये ज़ेहन भी हर बार ,बस उधर ही जाता है।
किसी अज़ीज़ की दी,सौगात है ये ज़ख्म भी,
हरा ही रहता हरदम ,कभी भर नही पाता है।
खवाहिशें तो बहुत थी, जिंदगी में "अधीर",
क्यों हरदम मुझे बस ,वो ही याद आता है।
--सुरेश पसारी "अधीर"
जाने के लिए दूर, क्यों कोई करीब आता है।
उसे धडकनों की तरह, बसाया था दिल में,
भूल जाये भले कोई, हमे सब याद आता है।
दिल का दर्द कितना सहे, अब ये आंखे भी,
अश्क बनकर आँखों से, बाहर ही आता है ।
बहुत की कोशिशे, दर्द-ए-ज़ुदाई भुलाने की,
ये ज़ेहन भी हर बार ,बस उधर ही जाता है।
किसी अज़ीज़ की दी,सौगात है ये ज़ख्म भी,
हरा ही रहता हरदम ,कभी भर नही पाता है।
खवाहिशें तो बहुत थी, जिंदगी में "अधीर",
क्यों हरदम मुझे बस ,वो ही याद आता है।
--सुरेश पसारी "अधीर"
हमे भी बहुत कुछ याद आ गया आपको पढ़कर...
ReplyDeleteअच्छी रचना..
धन्यवाद राहुल भाई
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