इक सीख ना सकें, हम तुम्हे भुलाना,
हमने खुद को, भुलाना सीख लिया।
अपनी खुशियाँ , हम छिपा ना सके,
इक ग़म को, छिपाना सीख लिया।
नहीं सीख सके, तुम्हे अपना बनाना
पर जग अपना, बनाना सीख लिया।
कभी तुमसे प्यार, हम जता ना सके,
पर दुनिया से, जताना सीख लिया।
सीख ना सकें हम, बस तन्हा रहना,
इक तेरी यादों मे, जीना सीख लिया।
बस अपना जीवन, हम जी ना सके,
तेरी खुशियों मे, जीना सीख लिया।
- सुरेश पसारी "अधीर"
हमने खुद को, भुलाना सीख लिया।
अपनी खुशियाँ , हम छिपा ना सके,
इक ग़म को, छिपाना सीख लिया।
नहीं सीख सके, तुम्हे अपना बनाना
पर जग अपना, बनाना सीख लिया।
कभी तुमसे प्यार, हम जता ना सके,
पर दुनिया से, जताना सीख लिया।
सीख ना सकें हम, बस तन्हा रहना,
इक तेरी यादों मे, जीना सीख लिया।
बस अपना जीवन, हम जी ना सके,
तेरी खुशियों मे, जीना सीख लिया।
- सुरेश पसारी "अधीर"
जीने के बहाने लाखों हैं
ReplyDeleteजीना तुझको आया ही नहीं
कोई भी तेरा हो सकता है
कभी तूने अपनाया ही नहीं
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हमे भी तो जीना नहीं आया भाई साहब...
अच्छी लगी रचना ....
शुक्रिया राहुल
ReplyDeleteसुरेश मेरे फेसबुक मित्र हैं
उम्दा रचना |बहुत खूब...सिखाया है,सुरेश जी ने |
ReplyDeleteआभार मन्टू भाई
ReplyDeleteसुरेश मेरे फेसबुक में मित्र हैं