वरालि सी हो चाँदनी
लज्जा की व्याकुलता हो
तेरे उभरे नयनों में ।
प्रिय विरह में व्याकुल
क्यों जल भर आये?
तेरे उभरे नयनों में ।
संचित कर हर प्रेम भाव
प्रिय मिलन की आस है
तेरे उभरे नयनों में ।
गहरी मन की वेदना
छुपी बातों की झलक दिखे
तेरे उभरे नयनों में ।
वनिता बन प्रियतम की
प्रिय के नयन समा जायें
तेरे उभरे नयनों में ।
© दीप्ति शर्मा
https://www.facebook.com/deepti09sharma
लज्जा की व्याकुलता हो
तेरे उभरे नयनों में ।
प्रिय विरह में व्याकुल
क्यों जल भर आये?
तेरे उभरे नयनों में ।
संचित कर हर प्रेम भाव
प्रिय मिलन की आस है
तेरे उभरे नयनों में ।
गहरी मन की वेदना
छुपी बातों की झलक दिखे
तेरे उभरे नयनों में ।
वनिता बन प्रियतम की
प्रिय के नयन समा जायें
तेरे उभरे नयनों में ।
© दीप्ति शर्मा
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तेरे उभरे नयनों में
ReplyDeleteसंचित कर हर प्रेम भाव
..................................
बहुत खूब.... सुन्दर लगी रचना
धन्यवाद राहुल भाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया |
ReplyDeleteआभार आपका ||
धन्यवाद रवि भैय्या
Deleteवराली का अर्थ ?
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
दीदी मैं भी जानने को इच्छुक हूँ
Deleteसही शब्द वारालि होना चाहिये था
और वारालि का अर्थ आँखों से लेना चाहिये
मैं कल दीप्ति बहन ले पूछूँगी
बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDelete:-)
खूबसूरत शब्द रचना ....
ReplyDeleteशुक्रिया दीदी
Deleteबहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना.बहुत बधाई आपको
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