Wednesday, September 5, 2012

वक़्त गुज़रा मगर नहीं गुज़रा..........तन्हा अज़मेरी

वक़्त गुज़रा मगर नहीं गुज़रा

तेरी यादों का कारवाँ दिल से.

कहते हैं जीते हैं सब यंहा कब से

जीता कोई नहीं यंहा दिल से.

जो सितम करके सिखा गए जीना

निकले कैसे वो मेहरबाँ दिल से.

बोले मुझपे भी होंगी इनायतें उनकी

अर्ज़ ये उन्होंने किया कंहा दिल से.

सोचता हूँ अब मिटा ही डालूं

दर्द का ये आसमाँ दिल से.

वक़्त गुज़रा मगर नहीं गुज़रा

तेरी यादों का कारवाँ दिल से ..

-तन्हा अज़मेरी

7 comments:

  1. जो सितम करके सिखा गए जीना
    निकले कैसे वो मेहरबाँ दिल से.....
    ..........................
    बहुत ही उम्दा उम्दा अजमेरी साहब..
    यशोदाजी...आपका भी शुक्रिया....दिल से

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  2. दर्द का ये आसमाँ दिल से.

    वक़्त गुज़रा मगर नहीं गुज़रा

    तेरी यादों का कारवाँ दिल से ....behtarin gazal...thanks for such a post.

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  3. बहुत बहुत मुबारक हो अजमेरी साहेब, और आपका धन्यवाद .....

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  4. शुभ प्रभात
    शुक्रिया सुनील भाई

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  5. बहुत सुन्दर,
    मन को भाती रचना..
    :-)

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    1. शुभ प्रभात रीना बहन
      धन्यवाद

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