वक़्त गुज़रा मगर नहीं गुज़रा
तेरी यादों का कारवाँ दिल से.
कहते हैं जीते हैं सब यंहा कब से
जीता कोई नहीं यंहा दिल से.
जो सितम करके सिखा गए जीना
निकले कैसे वो मेहरबाँ दिल से.
बोले मुझपे भी होंगी इनायतें उनकी
अर्ज़ ये उन्होंने किया कंहा दिल से.
सोचता हूँ अब मिटा ही डालूं
दर्द का ये आसमाँ दिल से.
वक़्त गुज़रा मगर नहीं गुज़रा
तेरी यादों का कारवाँ दिल से ..
तेरी यादों का कारवाँ दिल से.
कहते हैं जीते हैं सब यंहा कब से
जीता कोई नहीं यंहा दिल से.
जो सितम करके सिखा गए जीना
निकले कैसे वो मेहरबाँ दिल से.
बोले मुझपे भी होंगी इनायतें उनकी
अर्ज़ ये उन्होंने किया कंहा दिल से.
सोचता हूँ अब मिटा ही डालूं
दर्द का ये आसमाँ दिल से.
वक़्त गुज़रा मगर नहीं गुज़रा
तेरी यादों का कारवाँ दिल से ..
-तन्हा अज़मेरी
जो सितम करके सिखा गए जीना
ReplyDeleteनिकले कैसे वो मेहरबाँ दिल से.....
..........................
बहुत ही उम्दा उम्दा अजमेरी साहब..
यशोदाजी...आपका भी शुक्रिया....दिल से
धन्यवाद राहुल
ReplyDeleteदर्द का ये आसमाँ दिल से.
ReplyDeleteवक़्त गुज़रा मगर नहीं गुज़रा
तेरी यादों का कारवाँ दिल से ....behtarin gazal...thanks for such a post.
बहुत बहुत मुबारक हो अजमेरी साहेब, और आपका धन्यवाद .....
ReplyDeleteशुभ प्रभात
ReplyDeleteशुक्रिया सुनील भाई
बहुत सुन्दर,
ReplyDeleteमन को भाती रचना..
:-)
शुभ प्रभात रीना बहन
Deleteधन्यवाद