ये धागा
रहीम के प्रेम का नहीं कि
टूट गया तो
जुड़ेगा नही.और जोड़ा
तो गाँठ पड़ जाएगी
ये धागा
आज के हम-तुम और
हमारे-तुम्हारे प्रेम का है.
इस में घर-बाहर के
और भी लोग शामिल हैं.
बेशक पड़ जाए गाँठ
हम गाँठ पर अटकेंगे
लोकिन
अपने प्रेम का
अक्षितिज बँधी अलगनीं पर
अपने रंगीन स्वप्नों को
कपड़ों की तरह
फैलाते जाएँगे.
न कभी क्षितिज आएगा और
न कभी हमारा प्रेम स्थगित होगा
---ओम प्रभाकर
रहीम के प्रेम का नहीं कि
टूट गया तो
जुड़ेगा नही.और जोड़ा
तो गाँठ पड़ जाएगी
ये धागा
आज के हम-तुम और
हमारे-तुम्हारे प्रेम का है.
इस में घर-बाहर के
और भी लोग शामिल हैं.
बेशक पड़ जाए गाँठ
हम गाँठ पर अटकेंगे
लोकिन
अपने प्रेम का
अक्षितिज बँधी अलगनीं पर
अपने रंगीन स्वप्नों को
कपड़ों की तरह
फैलाते जाएँगे.
न कभी क्षितिज आएगा और
न कभी हमारा प्रेम स्थगित होगा
---ओम प्रभाकर
न कभी क्षितिज आएगा और
ReplyDeleteन कभी हमारा प्रेम स्थगित होगा
.......................................................
वाह..... प्रेम के नए आयाम....
मुझे अनोखा मगर सांचा लगा....
आभार
Deleteशुभ प्रभात राहुल
सार्थक अभिव्यक्ति प्रेम की सरल भाव सहज मन से लिखी रचना ,बधाई |
ReplyDeleteआभार संगीता बहन
Deleteशुभ प्रभात
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteआभार अंजू दीदी
Deleteशुभ प्रभात
खूबसूरत बात खूबसूरत अंदाज़ में ।
ReplyDeleteआभार नादिर भाई
Deleteये धागा
ReplyDeleteरहीम के प्रेम का नहीं कि
टूट गया तो
जुड़ेगा नही.और जोड़ा
तो गाँठ पड़ जाएगी
ये धागा
आज के हम-तुम और "वो "
सौ बार टूटेगा ,सौ बार जुड़ेगा .
ये वो धागा है जो अपना बाहरी आवरण ,रूप विधान बदलता रहता है .टूटता है बारहा ,पर टूटन दिखती नहीं है .
ReplyDeleteमेरी धरोहर
Thursday, September 20, 2012
हमारा प्रेम.............ओम प्रभाकर
ये धागा
रहीम के प्रेम का नहीं कि
टूट गया तो
जुड़ेगा नही.और जोड़ा
तो गाँठ पड़ जाएगी
ये धागा
आज के हम-तुम और
हमारे तुम्हारे प्रेम का है
...............
हमारे-तुम्हारे प्रेम का है. ये धागा
रहीम के प्रेम का नहीं कि
टूट गया तो
जुड़ेगा नही.और जोड़ा
तो गाँठ पड़ जाएगी
ये धागा
आज के हम-तुम और "वो "
सौ बार टूटेगा ,सौ बार जुड़ेगा .
ये वो धागा है जो अपना बाहरी आवरण ,रूप विधान बदलता रहता है .टूटता है बारहा ,पर टूटन दिखती नहीं है .
धन्यवाद
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद भाई
Deletewah kabhi kabhi mann ye kahta jarooa hai.. bahut khoob
ReplyDeleteशुक्रिया आशा बहन
Deleteगांठ पर कम से कम अटकेगा तो जरूरु ॥प्रेम की नयी परिभाषा ... सुंदर
ReplyDeleteसटीक विवेचना
Deleteदीदी प्रणाम
न कभी क्षितिज आएगा और
ReplyDeleteन कभी हमारा प्रेम स्थगित होगा
खुबसूरत अहसास लिए रचना....
सुन्दर
:-)
धन्यवाद रीमा बहन
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ReplyDeleteबेशक पड़ जाए गाँठ
हम गाँठ पर अटकेंगे
लोकिन
अपने प्रेम का
अक्षितिज बँधी अलगनीं पर
अपने रंगीन स्वप्नों को
कपड़ों की तरह
फैलाते जाएँगे.
......
ओम् प्रभाकर जी को एक सुंदर सोंच के लिये बधाई !
शुक्रिया आनन्द भाई
Deletewah ! pyar ka alag andaz...sabse badi baat ismay hai...bahut positive khayal
ReplyDeleteआभार रेवा बहन
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी
Deleteवाह, बिल्कुल नया अंदाज़
ReplyDeleteशुक्रिया ओंकार भाई
Deleteक्या बात काही है | सुंदर |
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट:-
मेरा काव्य-पिटारा:पढ़ना था मुझे
आभार प्रदीप भाई
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