भोर की सुनहरी, किरण सी होती है बेटियाँ,
आंगन मे कोयल सी, चहचहाती है बेटियाँ।
बिन बेटियों के, सुना सा लगता है ये आंगन,
पुत्र घर की शान तो, कुल की आन है बेटियाँ।
कर देती है घर को, अपने व्यवहार से रौशन,
मगर व्यथा मन की, कह ना पाती है बेटियाँ।
पहले पिता का घर, फिर अपने ससुराल को,
प्यार से घरो को ,सजाती संवारती है बेटियाँ।
पढ बांच लेना इनके, भोले से सरल मन को ,
सर्वस्व वार देती है, कुलो की आन है बेटियाँ।
बाबुल के घर आंगन, फुदकती है चिरैया सी,
बहू बनके ससुराल की, शान होती है बेटियाँ।
कम ज्यादा का कभी, ये शिकवा नही करती,
जो मिला मिल बाँटकर, खा लेती है बेटियाँ।
उड़ान में तो गगन की, दूरियाँ भी पूरी करले
पर मन को कभी अपने, मार लेती है बेटियाँ।
है दिल मे तूफ़ान भी और सागर की गहराई भी
जिन्दगी की धूप मे शीतल सी छांव है बेटियाँ।
कम मत आंकना "अधीर" इन्के योगदान को,
दुनियाँ मे दो दो कुलों को,तार देती है बेटियाँ।
सुरेश पसारी "अधीर"
बेटियों के बगैर सब कुछ अधूरा है अधीर साहब..
ReplyDeleteआपने यकीनन बहुत सुन्दर और मौजू लिखा
एक नायाब बेटी के कारण ही ये शब्द हम तक पहुँच पाए
यशोदा जी.....मै सही कह रहा हूँ न ............
आभार राहुल
Deletebahut badhiya sankalan yashoda jee
ReplyDeleteधन्यवाद भाई पंकज
Deleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
ReplyDeleteऔर बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
मदन भाई
Deleteमैं लिखती नहीं
बस पढ़ती हूँ
अच्छी रचनाओं को यहाँ सहेज लेती हूँ
नई कविताएँ और ग़ज़ल ढूँढते रहती हूँ
सादर
इस सुंदर और सार्थक रचना के लिए बधाई ,बेटियां तो एईसी ही होती है
ReplyDeleteसच कहा आपने
Deleteआप और मैं भी तो बेटियाँ ही हैं
बेटियाँ खुशियाँ नहीं माँगतीं
ReplyDeleteखुशियाँ देना चाहती हैं
ख़ुश रहने से ज़्यादा
खुशियाँ बाँटना चाहती हैं