कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
घाटी में आंगन है
आंगन में बांहें
बांहती दहरिया की
कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
आंखों में झीलें हैं
झीलों में रंग
रंगवती हलचल की
कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
माटी में सांसें हैं
सांसों के होठ
बोलती पखावज की
कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
दूरी पर चौराहे
चौराहे खुभते हैं
चरवाहे पांवों की
कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
रात एक पाटी है
पहर-पहर लिखता है
उजलती हक़ीक़त की
कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
घाटी में आंगन है, आंगन में बाहें
-हरीश भादानी
जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-09-2018) को "काश आज तुम होते कृष्ण" (चर्चा अंक-3084) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर रचना 👌👌👌 जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDelete