वफ़ाओं का मौसम बदलने लगा
मुक़द्दर भी अब हाथ मलने लगा
तेरी ख़्वाहिशें दिल में हसरत लिए
पलकों पे सावन मचलने लगा
मिले हादसे मुझको हर मोड़ पर
सम्भलने से पहले फिसलने लगा
तेरी याद में खो गया इस क़दर
उम्मीदों का इक दीप जलने लगा
मिलने से पहले जुदाइयों का ग़म
पल-पल दिलों में ही पलने लगा
तुझे ढूँढता हूँ मैं यूँ दर -ब- दर
पैरों का छाला भी जलने लगा
दीवाना समझ लोग यूँ डर गए
हाथों में पत्थर उछलने लगा
-नीना पॉल
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteवाह!!! बहुत खूब 👌👌👌
ReplyDeleteउम्दा रचना
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteक्या बात है
बहुत लाजवाब....
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-09-2018) को "बादलों को इस बरस क्या हो रहा है?" (चर्चा अंक-3098) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्वकर्मा जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDeleteक्या बात है
वाह !! सुभानअल्लाह
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteबहुत खूब
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