Tuesday, July 10, 2018

संकल्प....शशि पाधा


रात गई , बात गई
आओ दिन का अह्वान करें
भूलें तम की नीरवता को
जीवन में नव प्राण भरें

आओ छू लें अरुणाई को
रंग लें अपना श्यामल तन
सूर्यकिरण से साँसे माँगें
चेतन कर लें अन्तर्मन

ओस कणों के मोती पीकर
स्नेह रस का मधुपान करें।

दोपहरी की धूप सुहानी
आओ इसका सोना घोलें,
छिटका दें वो रंग सुनहरी
पंखुड़ियों का आनन धो लें

डाली- डाली काँटे चुन लें
फूलों में मुसकान भरें।

मलय पवन से खुशबू माँगें
दिशा- दिशा महका दें
पंछी छेड़ें राग रागिनी
तार से तार मिला लें

नदिया की लहरों में बहकर
सागर से पहचान करें।

शशि किरणों से लेकर चाँदी
संध्या का श्रृंगार करें
आँचल में भर जुगनू सारे
सुख सपने साकार करें

निशी तारों के दीप जलाकर
आओ मंगल गान करें।

डाली पर इक नीड़ बना कर
हरी दूब की सेज बिछाएँ
नभ की नीली चादर ओढ़ें
सपनों का संसार बसाएं

सुख के मोती चुन लें सारे
चिर जीवन का मान करें

भूलें तम की नीरसता को
आओ नव रस पान करें
नव वर्षा की नई ऊषा में
जीवन में नव प्राण भरें।
-शशि पाधा

3 comments:

  1. भूलें तम की नीरसता को
    आओ नव रस पान करें
    नव वर्षा की नई ऊषा में
    जीवन में नव प्राण भरें। सुंदर रचना

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (11-07-2018) को "चक्र है आवागमन का" (चर्चा अंक-3029) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  3. प्रिय यशोधा अग्रवाल जी,
    आज अचानक गूगल पर कुछ ढूंढते हुए आपके ब्लॉग पर मेरी दृष्टि पड़ी | और फिर यहाँ पर अपनी रचनाएं देख कर सुखद आश्चर्य भी हुआ| सब से पहले तो मेरा धन्यवाद स्वीकार करें | आपने शायद साहित्य कुंज में इन्हें पढ़ा /देखा होगा| अपने पाठकों के साथ मेरी रचनाएं बांटने के लिए आभार | स्नेह बना रहे |

    शुभकामनाओं सहित,
    शशि पाधा

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