ठुमकि ठुमकि गईया के बाड़े
कान्हा घूंघर पैर धरे हैं
कमर कछनियाँ खुलि खुलि जाये
लटपटाय कर गिरत उठत है !
आधी कछनिया फँसी कमर मै
आधी भूमि पर लहराये
नाय सुधि कछु कान्हा को वाकी
चाहे खुली के गिर ही जाये !
जकड़ पाँव गईया मय्या को
एक हाथ पुनि थन पकड़त है
काचौ दूध पिये है पचि पचि
नैकु ना बछड़े से डरपत है !
गय्या अति नेह के खातिर
पूछ से खुद सूत दूर हटाये
कान्हा दूध पी ले पेट भर
ममत्व भाव थन भरि भरि आये !
ना दूध की इच्छा कोई
नाय कछनिया ध्यान
गय्या के प्रति नेह का
कान्हा कर रहे प्रतिदान ! !
डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-11-2017) को "ब्लॉग कैसे बनाये और लेख कैसे लगाये" (चर्चा अंक-2798) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'