सुधा को प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी थी। उसने पति को फ़ोन किया तो जवाब मिला की अभी बॉस ने थोड़ा जरूरी काम दिया है वो ख़त्म किए बिना नहीं आ सकता।
उसने सास की और कातर आँखों से देखा तो उसने कहा आज तो मेरी टांगों से खड़ा भी नहीं हुआ जाता, तेरे जेठ को कहती हूँ दुकान से आकार तुझे अस्पताल पहुंचा आए।
अस्पताल में अकेले ही बिस्तर पर दर्द से तड़पती सुधा की आँखों से आँसू बह रहे थे। उसे याद आ रहा था दो साल पहले इसी अस्पताल में उसने परी को जन्म दिया था। कितनी खुश थी वो अपने पहले बच्चे को ले कर पर बेटी की ख़बर से सब उसके ख़िलाफ़ हो गए थे।
सास कमरे में आई थी और बड़बड़ाते हुए बाहर चली गयी बड़ी आई किस्मत वाली। माँ ने किस्मत वाली किस्मत वाली कह के हमारे माथे मड़ दी। पति ने भी जैसे बड़े बोझिल मन से परी को उठाया। नर्स ने जेठ जी से कहा लक्ष्मी हुई है – बधाई, भैया जी मिठाई खिलाओ। जेठ जी ने नर्स को बाहर बुला कर कहा – 'नी कुड़ी दी की वदाई, कदे कुड़ी वी वदाई दा कारण हुंदी है।'
तभी दर्द की तेज़ लहर उसे ख़यालों से वापिस ले आई। डॉक्टर नर्स से कह रही थी इनके घर से किसी को बुला लो अब टाइम नज़दीक आ गया है। सुधा दर्द से बेसुध हो गई थी जब होश आया तो गलियारे में से जेठ जी की आवाज़ आ रही थी–‘वदाई होवे, कुड़ी दे मुंडा होया।'
भीगी आँखों से सुधा सोच रही थी लड़की बधाई की जननी हो सकती है पर उसका अपना जन्म?
-सुमन जैन लूथरा
सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबिल्कुल सही .......
ReplyDeleteबहुत खूब....
बिलकुल ठीक लिखा है |
ReplyDeleteमुझे ये सब देख व सुन कर दुख होता हैं की आज भी हमारे देश में बेटियों को बोझ समझा जाता हैं। ये सबाल पुरूष प्रधान समाज से अखिर क्यंू हैं बेटियां बोझ ...............
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in