Wednesday, August 3, 2016

स्‍पर्श प्रेम का......ज्योति जैन














प्रेम का प्रथम स्‍पर्श
उतना ही पावन व निर्मल
जैसे कुएं का
बकुल-
तपती धूप में प्रदान करता
शीतलता-
सौंधी महक लिए।
जब मिलता तो लगे
बहुत कम
लेकिन
बढते वक्‍त के साथ
भर जाता लबालब
परिपूर्ण हो जाता कुआं
हमेशा प्‍यास बुझाने के लिए
कभी न कम होने के लिए।
प्रेम का प्रथम स्‍पर्श
मानो कुएं का बकुल।
-ज्योति जैन

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-08-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2424 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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