जिनके खून से बना शरीर
अपनाएं उनका हर पीर
जीवन भर माने उपकार
श्रेष्ट बने और करे विचार
अपने पिता का करे सम्मान
अहं तोड़कर बने महान
चरणों मे रखकर हम शीश
पाते हैं निर्मल आशीष
पिता हमारे गैर नहीं हैं
आज उन्हीं का खैर नहीं है
स्वार्थी भावना ओछी सोच
मिटा दिया अपनों की बोध
उन्होंने सब कुछ था हारा
हमको उनसे मिला सहारा
अपनी ममता उन्होंने वारा
उनसे रोशन होता घर सारा
ध्यान हमेशा रहे यही
अपमान मिले ना उन्हें कभी
उम्मीदों का हम किरण बने
उनके जीवन का सुमन बने
-भारती दास
अपने पिता का करे सम्मान
अहं तोड़कर बने महान
चरणों मे रखकर हम शीश
पाते हैं निर्मल आशीष
पिता हमारे गैर नहीं हैं
आज उन्हीं का खैर नहीं है
स्वार्थी भावना ओछी सोच
मिटा दिया अपनों की बोध
उन्होंने सब कुछ था हारा
हमको उनसे मिला सहारा
अपनी ममता उन्होंने वारा
उनसे रोशन होता घर सारा
ध्यान हमेशा रहे यही
अपमान मिले ना उन्हें कभी
उम्मीदों का हम किरण बने
उनके जीवन का सुमन बने
-भारती दास
waaaaaaaaah waaaaaaaaaaaaaah hot khub ye ruh ko chune vale shabd hai bhot khubt
ReplyDeleteदिल को छू गई आपकी रचना
ReplyDeleteनमस्कार
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (17-06-2013) के :चर्चा मंच 1278 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
सूचनार्थ |
Apki Rachna Dil ko Chhu gaya aur ankhen nam ho gayi yeh soch kar ki log kaise apne PITA ko Dukhi kar chain se rah pate hain.
ReplyDeleteBhaiya & Didi from Lucknow
लाजवाब ... कमाल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDelete