चाय पीते हुए
मुझे लगता है
जैसे पृथ्वी का सारा प्यार
मुझे मिल रहा होता है
कहते हैं
बोधिधर्म की पलकों से
उपजी थीं चाय की पत्तियां
पर मुझे लगता है
भिक्षु नहीं
प्रेमी रहा होगा बोधिधर्म
जिसने रात-रात भर जागते हुए
रचा होगा
आत्मा के एकान्त में
अपने प्रेम का आदर्श!
मुझे लगता है
दुनिया में
कहीं भी जब दो आदमी
मेज के आमने-सामने बैठे
चाय पी रहे होते हैं
तो वहां स्वयं आ जाते हैं तथागत
और आसपास की हवा को
मैत्री में बदल देते हैं
आप विश्वास करें
या नहीं
पर चाय की प्याली में
दुनिया को बदलने की ताकत है...।
- महाराज कृष्ण संतोषी
बहुत बढ़िया,सुंदर प्रस्तुति,,,आभार
ReplyDeleteRecent post: एक हमसफर चाहिए.
आपकी यह रचना कल मंगलवार (25 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteवाह बहुत ही अच्छा लगा, धन्यवाद.
ReplyDeleteपर चाय की प्याली में
ReplyDeleteदुनिया को बदलने की ताकत है .......
~~
अगले जन्म में आज़मा लेगें
इस जन्म में ज्ञान देरी से मिली
हार्दिक शुभकामनायें
उत्क्रुस्त .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteवाह...रोचक...बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDelete@मानवता अब तार-तार है
इसी लिए मम्मी ने उसकी मुझे चाय पे बुलाया था !
ReplyDeleteआप विश्वास करें
ReplyDeleteया नहीं
पर चाय की प्याली में
दुनिया को बदलने की ताकत है...।
चाय की प्याली के साथ बैठ कर बड़े-बड़े मसले सुलझाये जा सकते हैं
बहुत सुंदर रचना!
Manju Mishra
www.manuikavya.wordpress.com