दुख रखता हूं कलेजे में
इंतजार सुख का करता हूं
इतना जीवन है मेरे आसपास
कि मैं कभी निराश नहीं होता
सफल लोगों के बीच
अपनी असफलता
नहीं मापा फिरता
कड़कती धूप में
वे मुझे देखते हैं
पैदल चलते हुए
और हंसते हैं मेरी दरिद्रता पर
मैं भी हंसता हूं उन पर
यह सोचते हुए
कार नहीं मेरे पास
तो क्या
कवि हूं मैं
पंख हैं मेरे पास
जो उन्हें दिखाई नहीं देते।
- महाराज कृष्ण संतोषी
बहुत सुंदर रचना ! जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुंचे कवि !
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteBahut sundar ....
ReplyDeleteaaah waaah umdah haiN .....bahut khoob
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