एक निवेदनः
कोई सामान घर में एक कागज में पेक करके लाया गया वह कागज मेरी नजर में आया, उसी कागज में ये ग़ज़ल छपी हुई थी, पर श़ाय़र का नाम नहीं था. आप सभी से ग़ुज़ारिश है यदि किसी को इस ग़ज़ल के श़ाय़र का नाम मालूम हो तो मुझे बताएं ताकि मैं श़ाय़र का नाम लिख सकूं...शुक्रिया...यशोदा
जबान सुकूं को, सुकूं बांकपन को तरसेगा,
सुकूंकदा मेरी तर्ज़-ऐ-सुकूं को तरसेगा.
नए प्याले सही तेरे दौर में साकी,
ये दौर मेरी शराब-ऐ-कोहन को तरसेगा.
मुझे तो खैर वतन छोड़ के अमन ना मिली
वतन भी मुझ से गरीब-उल-वतन को तरसेगा
उन्ही के दम से फरोज़ां पैं मिलातों के च़राग
ज़माना सोहबत-ए-अरबाव-ए फन को तरसेगा
बदल सको तो बदल दो ये बागबां वरना
ये बाग साया-ए-सर्द-ओ-समन को तरसेगा
हवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना एक दिन
ज़मीं पानी को सूरज़ किरण को तरसेगा
ग़ज़ल कार....अज्ञात
पुनः प्रकाशन...धरोहर से
पुनः प्रकाशन...धरोहर से
बहुत सुन्दर बहन! आपका साहित्य के प्रति यह समर्पण निश्चित ही साहित्य को एक नई दिशा देगा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर**** बदल सको तो बदल दो ये बागबां वरना
ReplyDeleteये बाग साया-ए-सर्द-ओ-समन को तरसेगा
हवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना एक दिन
ज़मीं पानी को सूरज़ किरण को तरसेगा
ReplyDeleteअमीर खुसरो साहब का असर है गजल पर मजा आ गया .
बेहतरीन गजल है..
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