Tuesday, February 26, 2013

एक मीठी याद अपनी...........जनकराज पारीक



तुम्हारे नाम..
लिख रहा हूँ
एक और खत
तुम्हारे नाम

धूप के आखर
सियाही पुष्प के
मकरंद की.
एक मीठी याद अपनी
प्रीत के
अनुबन्ध की.
लेखनी पर
स्मृतियों के
लग रहे विराम

कह नहीं पाते
हृदय का बात
शब्द असमर्थ
खुल रहे हैं
दूरियों के 
कसमसाते अर्थ.

समझना तुम
जो कहें ये
मूक सर्वनाम.

--जनकराज पारीक

7 comments:

  1. अनुबन्ध की.
    लेखनी पर
    स्मृतियों के
    लग रहे विराम
    .......................
    तोड़ डालिए अनुबंध को ....

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  2. चुप रहिये ,शांति मिलेगी अनुदंध तोड़कर !
    new postक्षणिकाएँ

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना.

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  4. सुन्दर अनुभूति सुन्दर
    अभिव्यक्ति

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  5. बहुत सुन्दर! कहां से लाती हैं यशोदा बहन खोज खोजकर ये मोती।

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  6. बहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई
    मेरी नई रचना
    ये कैसी मोहब्बत है
    खुशबू

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