तुम्हारे नाम..
लिख रहा हूँ
एक और खत
तुम्हारे नाम
धूप के आखर
सियाही पुष्प के
मकरंद की.
एक मीठी याद अपनी
प्रीत के
अनुबन्ध की.
लेखनी पर
स्मृतियों के
लग रहे विराम
कह नहीं पाते
हृदय का बात
शब्द असमर्थ
खुल रहे हैं
दूरियों के
कसमसाते अर्थ.
समझना तुम
जो कहें ये
मूक सर्वनाम.
--जनकराज पारीक
अनुबन्ध की.
ReplyDeleteलेखनी पर
स्मृतियों के
लग रहे विराम
.......................
तोड़ डालिए अनुबंध को ....
ReplyDeleteचुप रहिये ,शांति मिलेगी अनुदंध तोड़कर !
new postक्षणिकाएँ
बहुत ही सुन्दर रचना.
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ReplyDeleteसुन्दर अनुभूति सुन्दर
अभिव्यक्ति
km shabdon men badi bat......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! कहां से लाती हैं यशोदा बहन खोज खोजकर ये मोती।
ReplyDeleteबहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई
ReplyDeleteमेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू