Friday, July 13, 2018

कुछ फुटकर श़ेर.....जनाब "जमाल एहसानी"

 इस सफर में कोई दो बार नहीं लुट सकता 
 अब दोबारा तिरि चाहत नहीं की जा सकती
 *** 
याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ
 भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है
 *** 
तेरे बगैर जिसमें गुज़ारी थी सारी उम्र 
 तुझसे जब आए मिल के तो वो घर ही और था 
 *** 
 दिल से तेरी याद निकल कर जाए क्यों 
 घर से बाहर क्यों घर का सामान रहे 
 *** 
जो सिर्फ एक ठिकाने से तेरे वाकिफ़ हैं
 तिरी गली में वो नादान जाया करते हैं
 *** 
अजब है तू कि तुझे हिज़्र भी गराँ गुज़रा 
 और एक हम कि तिरा वस्ल भी गवारा किया
 *** 
इश्क करने वालों को सिर्फ ये सहूलत है
 कुछ न करने से भी दिल बहलता रहता है
 *** 
देखने वालों ने यकजान समझ रख्खा था 
 और हम साथ निभाते रहे मजबूरी में 
 *** 
जमाल खेल नहीं है कोई ग़ज़ल कहना 
 की एक बात बतानी है इक छुपानी है

-जनाब "जमाल एहसानी"

प्राप्ति स्त्रोत

Thursday, July 12, 2018

उड़ान...सोना झा

लो सहारा उस पवन के वेग का
निस्तेज़ और अदृश्य है जो धरा पर,
बना दी पगडंडियाँ हैं प्रकृति ने
स्मरण करो स्वयं के अस्तित्व का। 

बनाकर पंख उसको 
उड़ चलो गगन में,
वो है प्रतीक्षा में तुम्हारी।

उत्तेजना के लहर से,
विस्मरण करो हर प्रतिबंध का
बस तुम हो,
ये जगत है तुम्हारा
ये जगत है तुम्हारा।
-सोना झा
कवि परिचय

Wednesday, July 11, 2018

आज हम उड़ान क्यों ना भरें.....अक्षत मिश्रा

आसमान छूने की चाहत दिल में भरे, 
जूनून का जज़्बा चाहत में लिए, 
विश्वास की लहरें रगो में भरे, 
आज हम उड़ान क्यों ना भरें।  

राम-सा तेज आँखों में भरे 
भगत सिंह-सा जोश सांसो में भरे 
गाँधी-सा धैर्य स्वभाव में भरे 
आज हम उड़ान क्यों ना भरें। 

दुनिया को न दिखावे के लिए, 
न किसी को हराने के लिए, 
सिर्फ़ ख़ुद को साबित करने के लिए, 
वो साहस वो जज़्बा रगो में भरे, 
आज हम उड़ान क्यों ना भरें।  
    
चिंता और भय को त्यागते हुए, 
राम से सच्चे पथ पर चलते हुए, 
कृष्ण की तरह शत्रुओं को पराजित करते हुए, 
मन के महासागर में जल की तरह अथाह, 
सिर्फ़ सफलता का विचार भरे, 
आज हम उड़ान क्यों ना भरें। 

मंज़िल को ये कहने के लिए, 
कि मैंने तुझे जीता सब की खुशियों के लिए, 
रगो में भरे जूनून और सहस के लिए, 
सदा विजय का हृदय में संकल्प भरे, 
आज हम उड़ान क्यों ना भरें। 
-अक्षत मिश्रा

कवि परिचय

Tuesday, July 10, 2018

संकल्प....शशि पाधा


रात गई , बात गई
आओ दिन का अह्वान करें
भूलें तम की नीरवता को
जीवन में नव प्राण भरें

आओ छू लें अरुणाई को
रंग लें अपना श्यामल तन
सूर्यकिरण से साँसे माँगें
चेतन कर लें अन्तर्मन

ओस कणों के मोती पीकर
स्नेह रस का मधुपान करें।

दोपहरी की धूप सुहानी
आओ इसका सोना घोलें,
छिटका दें वो रंग सुनहरी
पंखुड़ियों का आनन धो लें

डाली- डाली काँटे चुन लें
फूलों में मुसकान भरें।

मलय पवन से खुशबू माँगें
दिशा- दिशा महका दें
पंछी छेड़ें राग रागिनी
तार से तार मिला लें

नदिया की लहरों में बहकर
सागर से पहचान करें।

शशि किरणों से लेकर चाँदी
संध्या का श्रृंगार करें
आँचल में भर जुगनू सारे
सुख सपने साकार करें

निशी तारों के दीप जलाकर
आओ मंगल गान करें।

डाली पर इक नीड़ बना कर
हरी दूब की सेज बिछाएँ
नभ की नीली चादर ओढ़ें
सपनों का संसार बसाएं

सुख के मोती चुन लें सारे
चिर जीवन का मान करें

भूलें तम की नीरसता को
आओ नव रस पान करें
नव वर्षा की नई ऊषा में
जीवन में नव प्राण भरें।
-शशि पाधा

Monday, July 9, 2018

है कठिन दौर ये, ऐ खुदा सब्र दे.....नादिर अहमद ख़ान

ज़िंदगी से मेरी, उनका जाना हुआ
अपनी मजबूरियों का बहाना हुआ

राह जब से हमारी जुदा हो गई
बीच अपनों के रहकर बेगाना हुआ

बढ़ गयी हैं मेरी अब परेशानियाँ
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

है कठिन दौर ये, ऐ खुदा सब्र दे
नेकियों का चलन अब पुराना हुआ

जाने अल्लाह को क्या है मंज़ूर अब
फिर तुम्हारी गली मेरा जाना हुआ

याद में क्यों पुरानी भटकता है दिल
उनसे बिछड़े हुये तो जमाना हुआ
-नादिर अहमद ख़ान

Sunday, July 8, 2018

उम्र कैसे निकल जाती है....श्वेता सिन्हा

पल दो पल में ही ज़िदगी बदल जाती है।
ख़ुशी हथेली पर बर्फ़-सी पिघल जाती है।।

उम्र वक़्त की किताब थामे प्रश्न पूछती है,
जख़्म चुनते ये उम्र कैसे निकल जाती है।

दबी कोई चिंगारी होगी राख़ हुई याद में,
तन्हाई के शरारे में बेचैनियाँ मचल जाती है।

सुबह जिन्हें साथ लिये उगती है पहलू में,
उनकी राह तकते हर शाम ढल जाती है।

ख़्वाहिश लबों पर खिलती है हँसी बनकर,
आँसू बन उम्मीद पलकों से फिसल जाती है।


    -श्वेता सिन्हा


Saturday, July 7, 2018

दोस्ती..........सुरेन्द्र 'अभिन्न'


दोस्ती की जब भी कभी बात हुआ करेगी /-
हमारा भी  जिक्र दुनिया कहा सुना करेगी /-

मिलते रहे कदम कदम एक दूजे से हौसले
 घोंसलों से निकले तो  बुलंदियाँ छुआ करेंगी /-

कयामत से कम नहीं अब  जुदाई का ख्याल
हकीकत ये लम्हा लम्हा मुझको डसा करेगी /-

ग्यारह रहे हमेशा हम एक और एक होकर, 
क्या अब भी दोस्ती को ऐसी दुआ रहेगी /

तब्दिले जश्न करते गए मुश्किलों को हम 
रस्मे जश्न कैसे अब यंहा मना  करेगी /

गहरे हो जाएँ रिश्ते दिल के जब अभिन्न 
दूरियाँ  क्या खाक फिर उनको जुदा करेंगी 
-सुरेन्द्र 'अभिन्न'