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Wednesday, August 15, 2018

परिचय ?....मीना चोपड़ा


भूल से जा गिरी थी मिट्टी में
मद्धिम सी अरुणिमा तुम्हारी।
बचा के उसको उठा लिया मैंने।
उठा कर माथे पर सजा लिया मैंने।

सिंदूरी आँच को ओढ़े इसकी
बर्फ़ के टुकड़ों पर चल पड़ी हूँ मैं।
सर्द सन्नाटों में घूमती हुई
हाथों को अपने ढूँढती रह गई हूँ मैं।

वही हाथ
जिनकी मुट्ठी में बन्द लकीरें
तक़दीरों को अपनी खोजती हुई
आसमानों में उड़ गईं थी।

बादलों में बिजली की तरह
कौंधती हैं अब तक।

शून्य की कोख से जन्मी ये लकीरें
वक़्त की बारिश में घुलकर
मेरे सर से पाओं तक बह चुकी हैं।
पी चुकी हैं मुझे क़तरा क़तरा।

पैर ज़मीं पर कुछ ऐसे अटक गए हैं
वे उखड़ते ही नहीं।

ये सनसनाहटे हैं कि छोड़ती ही नहीं मुझको
सुर और सुर्खियों के बीच
अपरिचित सी रह गई हूँ मैं।

स्वयं से स्वयं का परिचय?
कभी मिलता ही नहीं।

-मीना चोपड़ा

Saturday, January 27, 2018

एक स्पर्श.....मीना चोपड़ा


यहीं से उठता है
वह नगाड़ा
वह शोर
वह नाद
जो हिला देता है
पत्थरों को
झरनों को
आकश को
वही सब जो मुझमें
धरा है।
सिर्फ़ नहीं है
तो एक स्पर्श
जहाँ से यह सब
उठता है।

-मीना चोपड़ा
नैनीताल