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इक ग़ज़ल गुनगुनाओ सो जाओ ।
फ़िक्र दिल से उड़ाओ सो जाओ ।।
शमअ में जल गए पतंगे सब ।
इश्क़ मत आज़माओ सो जाओ ।।
यादें मिटतीं नहीं अगर उसकी ।
ख़त पुराने जलाओ सो जाओ ।।
रात काफ़ी गुज़र चुकी है अब ।
चाँद को भूल जाओ सो जाओ ।।
उसने तुमको गुलाब भेज दिया ।
गुल को दिल से लगाओ सो जाओ ।।
उल्फ़तें बिक रहीं करो हासिल ।
दाम अच्छा लगाओ सो जाओ ।।
ख़ाब में वस्ल है मयस्सर अब ।
रुख़ से चिलमन हटाओ सो जाओ ।।
बेवफ़ा की तमाम बातों का ।
यूँ न चर्चा चलाओ सो जाओ ।।
बारहा माँगने की आदत से ।
काहिलों बाज़ आओ सो जाओ ।।
है सियासत का फ़लसफ़ा इतना ।
आग घर में लगाओ सो जाओ ।।
इतनी जल्दी भी क्या मुहब्बत में ।
तुम ज़रा सब्र खाओ सो जाओ ।।
स्याह रातों में बेसबब मुझको ।
आइना मत दिखाओ सो जाओ ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मेरी धरोहर एक लोक प्रिय ब्लॉग है । मेरी गज़ल को प्रकाशित करने के लिए तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया । सप्रेम नमन ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 16 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह 👏 👏 👏 अप्रतिम. बहुत सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteदुष्यंत कुमार जी की याद दिला गई.
है सियासत का फ़लसफ़ा इतना ।
आग घर में लगाओ सो जाओ ।।