जब भी मुंह ढक लेता हूं,
तेरे जुल्फों की छांव में.
कितने गीत उतर आते हैं,
मेरे मन के गांव में!
एक गीत पलकों पे लिखना,
एक गीत होंठो पे लिखना.
यानी सारे गीत हृदय की,
मीठी चोटों पर लिखना !
जैसे चुभ जाता है
कांटा नंगे पांव में.
ऐसे गीत उतर आता है,
मेरे मन के गांव मे !
पलके बंद हुई जैसे,
धरती के उन्माद सो गए.
पलकें अगर उठी तो जैसे,
बिना बोले संवाद हो गए. !
जैसे धूप चुनरिया ओढ़े,
आ बैठी हो छांव में.
ऐसे गीत उतर आता है,
मेरे मन के गांव मे.!!
-डॉ. कुमार विश्वास
वाह। फोटो भी पुरानी है।
ReplyDeleteबढ़िया है रचना।
ReplyDeleteभाव मयी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार
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