Monday, October 21, 2019

पता नहीं कितनी पुरानी रचना है ...डॉ. कुमार विश्वास

जब भी मुंह ढक लेता हूं, 
तेरे जुल्फों की छांव में.
कितने गीत उतर आते हैं, 
मेरे मन के गांव में!

एक गीत पलकों पे लिखना, 
एक गीत होंठो पे लिखना.
यानी सारे गीत हृदय की, 
मीठी चोटों पर लिखना !

जैसे चुभ जाता है 
कांटा नंगे पांव में.
ऐसे गीत उतर आता है, 
मेरे मन के गांव मे !

पलके बंद हुई जैसे, 
धरती के उन्माद सो गए.
पलकें अगर उठी तो जैसे, 
बिना बोले संवाद हो गए. !

जैसे धूप चुनरिया ओढ़े, 
आ बैठी हो छांव में.
ऐसे गीत उतर आता है, 
मेरे मन के गांव मे.!!
-डॉ. कुमार विश्वास

3 comments:

  1. वाह। फोटो भी पुरानी है।

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  2. बढ़िया है रचना।

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  3. भाव मयी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार

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