माँ है अनुपम
माँ है अद्भुत
माँ ने नीर बन
मेरी जड़ों को सींचा
और उसी पानी से
मेरे कुकर्म धोए
माँ ने वायु बन
मेरे सपनों को उड़ान दी
और उसी हवा से
मेरे दोषों को उड़ा दिया
माँ ने अग्नि बन
मेरी अभिलाषाओं को ज्वलित किया
और उसी अनल में
मेरी वासनाओं को दहन किया
माँ ने वसुधा बन
मेरी आकांक्षाओं का पालन किया
और उसी भूमि में
मेरे अपराधों को दबा दिया
माँ ने व्योम बन
मेरी आत्मा को ऊर्जित किया
और उसी अनन्त में
मुझे बोझमुक्त किया
माँ है अनुपम
माँ है अद्भुत
-डॉ. कनिका वर्मा
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteमाँ.......... माँ ही होती है !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-11-2018) को "परिभाषायें बदल देनी चाहियें" (चर्चा अंक-3145) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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करवाचौथ की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
माँ की महिमा अनंत है
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