सहजता से कह दिया तुमने,
फाल्गुनी, मैं नहीं कर सकता तुमसे प्यार,
क्योंकि मैं डरता हूँ,
तुम्हारी आँखों की उजली भोर से..!
फिर कहा था यह भी कि
'वह' मैं कर चुका हूँ किसी और से...!
कभी अकेले में पूछना अपने मन के चोर से...
क्यों फिर हम आज भी बँधे हैं
एक सुगंधित डोर से।
अतीत के गुलाबी पन्ने पढ़ना कभी गौर से,
तुम्हीं ने मेरे दिल को पुकारा था जोर से,
वह पल महका हुआ भेज रही हूँ आज इस छोर से,
ऊपर से शांत हूँ लेकिन घबरा रही हूँ अन्तर्मन के शोर से।
-फाल्गुनी
इतनी महक और कोमलता होती है फाल्गुनी की कविताओ में की मन मुस्कुरा उठता है सचमुच। धन्यवाद् यशोदा जी
ReplyDeleteशब्द और भावना का अबाध प्रवाह ...बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteकर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
खूबसूरत अहसास !
ReplyDeleteमन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
ReplyDeletewah ! sundar ehsas
ReplyDeleteशब्द हैं कि थिरकने लगते हैं ..... ख्यालों के गुलदस्ते को देखकर
ReplyDeleteलाज़वाब प्रस्तुति