जब सोचा था तुमने
दूर कहीं मेरे बारे में
यहाँ मेरे हाथों की चुड़ियाँ छनछनाई थी।
जब तोड़ा था मेरे लिए तुमने
अपनी क्यारी से पीला फूल
यहाँ मेरी जुल्फें लहराई थी।
जब महकी थी कोई कच्ची शाख
तुमसे लिपट कर
यहाँ मेरी चुनरी मुस्कुराई थी।
जब निहारा था तुमने उजला गोरा चाँद
यहाँ मेरे माथे की
नाजुक बिंदिया शर्माई थी।
जब उछाला था तुमने हवा में
अपना नशीला प्यार
यहाँ मेरे बदन में बिजली सरसराई थी।
तुम कहीं भी रहो और
कुछ भी करों मेरे लिए,
मेरी आत्मा ले आती है
तुम्हारा भीना संदेश
मेरे जीवन का बस यही है शेष।
-फाल्गुनी
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर और भावप्रणव रचना।
ReplyDeleteतुम कहीं भी रहो और
ReplyDeleteकुछ भी करों मेरे लिए,
मेरी आत्मा ले आती है
तुम्हारा भीना संदेश
मेरे जीवन का बस यही है शेष। ... bahut sundar !
जब तोड़ा था मेरे लिए तुमने
ReplyDeleteअपनी क्यारी से पीला फूल
यहाँ मेरी जुल्फें लहराई थी।
खुबसूरत रचना
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletewah ! bahut sundar rachna
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