ख्वाहिशों की सिगड़ी पर
आंसुओं से नम हुए
कच्चे ख्वाब
सुलगे नहीं
किसी भी रात …..
जबकि अँधेरे की तिपाई पर बैठ कर
तन्हा रात
नींद की फूंकनी से
सुलगाती रही ख्वाब …..
उस रात की झील पर
सिसकती ख्वाबों की टूटी कश्ती
डूबी नहीं
न डूबेगी कभी |
इक दिन वह
ढूंढ ही लेगी अपना किनारा
सूरज के दस्तक से
नए खिलते सहर तक
---- डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति
आंसुओं से नम हुए
कच्चे ख्वाब
सुलगे नहीं
किसी भी रात …..
जबकि अँधेरे की तिपाई पर बैठ कर
तन्हा रात
नींद की फूंकनी से
सुलगाती रही ख्वाब …..
उस रात की झील पर
सिसकती ख्वाबों की टूटी कश्ती
डूबी नहीं
न डूबेगी कभी |
इक दिन वह
ढूंढ ही लेगी अपना किनारा
सूरज के दस्तक से
नए खिलते सहर तक
---- डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति
धन्यवाद यशोदा जी... मेरी इस कविता को यहाँ पर अपने ब्लॉग में जगह दी...किन्तु मेरा नाम गलत लिखा गया है... उसे ठीक कर लीजियेगा... सादर .
ReplyDeleteशुभ पभात
Deleteशुक्रिया
ठीक कर देती हूँ
दीदी ठीक कर दी हूँ
Deleteकृपया देखिये
सादर
नींद की फूंकनी से
ReplyDeleteसुलगाती रही ख्वाब …..
काफी दिलकश उम्मीदें .........
धन्यवाद राहुल भाई
Delete.....बहुत ...खूब ...........
ReplyDeleteशुक्रिया दीदी
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