Wednesday, July 4, 2012

मधुवन में पतझार लाना पड़े...... अन्सार कम्बरी

क्या नहीं कर सकूँगा तुम्हारे लिये,
शर्त ये है कि तुम कुछ कहो तो सही !


चाहे मधुवन में पतझार लाना पड़े,
या मरुस्थल में शबनम उगाना पड़े,


मैं भगीरथ सा आगे चलूँगा मगर,
तुम पतित पावनी सी बहो तो सही !

पढ़ सको तो मेरे मन की भाषा पढ़ो,
मौन रहने से अच्छा है झुँझला पड़ो,

मैं भी दशरथ सा वरदान दूँगा तुम्हें,
युद्ध में कैकेयी सी रहो तो रहो तो सही !

हाथ देना न सन्यास के हाथ में,
कुछ समय तो रहो उम्र के साथ में,

एक भी लांछन सिद्ध होगा नहीं,
अग्नि में जानकी सी दहो तो सही !




---ज़नाब अन्सार कम्बरी

3 comments:

  1. उत्कृष्ट रचना पढवाई...आभार

    ReplyDelete
  2. Heard this poem in 2002 and just remembered today

    ReplyDelete