मेरे इस ब्लाग की पचासवीं पोस्ट
मैं आदरणीय दीदी डॉ. सरोज गुप्ता
की कलम की कील से जड़ रहीं हूँ
देते हैं रोज नसीहतों की पुडिया ,
उनकी बातो में ठहराव बहुत है !
हम तो ठहरे कच्चे धागे ,
उनके प्रेमजाल में उलझे आज भी ,
जान हथेली पर रख भागे है !
देख बारिश का जल भराव ,
स्वप्नों के दिखाते ख़्वाब बहुत हैं !
वो बारिश का पानी ,
वो कागज़ की कश्ती से ,
उनका लगाव बहुत है !
मित्रों के मित्रों के नवाब ,
उनका महफिल में रुवाब बहुत है !
सुरा सुन्दरी के ठेकेदार ये,
रिश्तों पर पैसा यहाँ पडता भारी,
हीरे जवाहरात के उभार बहुत है !
देश के गद्दारों को खिलाते कबाब ,
गैरों के साथ भी लगाव बहुत है!
कठोर फैसले लेने कठिन थे ,
देश हित किया क्यों मलिन था ,
उनके पास इसके जवाब नहीं है !
उनके पास इसके जवाब बहुत है !!
-डॉ. सरोज गुप्ता
यशोदा बहन टाइपिंग में ग़लती हो रही है..ज़रा देखें
ReplyDeleteसंजीव भाई, शुभ प्रभात,
Deleteध्यानाकर्षण हेतु धन्यवाद,
ये पूरी कविता डॉ. दीदी के पोस्ट की कॉपी है
उनकी अनुमति के बिना परिवर्तन सम्भव नहीं है
सादर
Admirable spirit of compassion and empathy in this lyric full of rhythm.With either total surrender or total dependence on the men folks in patriarchial homes;it is difficult to even tell right or wrong for actions of wealthy aristocrats , who have denials as well as lots of justifications for their lifestyle . But the actual intentions and\or morals from this "Dharohar" geet are not included in the poem.
ReplyDeleteशुक्रिया मलिक भाई
Deleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
कल 03/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
धन्यवाद यशवन्त भाई
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteशुभ प्रभात
Deleteधन्यवाद
जी जरूर
धन्यवाद तृप्ति जी
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