हमको शिकायतें रहीं, उनको गिला रहा,
मुद्दत से बहरहाल यही सिलसिला रहा !
मेरे खुतूत कैसे रकीबों ने पढ़ लिये,
लगता है नामावर मेरा उनसे मिला रहा !
जूड़े में गुल को जैसे नई ज़िन्दगी मिली,
वो ज़िन्दगी बाद भी कैसा खिला रहा !
दिल मेरा अपने वास्ते भी सोचता नगर,
वो तो बस उनकी याद में ही मुब्तिला रहा !
तुम जिसके साथ हो लिये वो एक भीड़ थी,
हम जिसके साथ में चले वो क़ाफ़िला रहा !
----स्व. पण्डित कृष्णानन्द चौबे
प्रस्तुतिकरणः ज़नाब अन्सार काम्बरी
यशोदा जी क्या बात है ,हृदय को छुए भाव ,,,,अनछुए तथ्यों से संवाद करती पंक्तियाँ ........बधाईयाँ जी /
ReplyDeleteशुक्रिया वीर जी
Deleteअच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता । मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।
ReplyDeleteजी बहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteशुक्रिया शबनम बहन
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