Thursday, October 10, 2019

हिन्दी के हिमायती बन कर, संस्थाओं से नेह जोड़िये..काका हाथरसी

प्रकृति बदलती क्षण-क्षण देखो,
बदल रहे अणु, कण-कण देखो|
तुम निष्क्रिय से पड़े हुए हो |
भाग्य वाद पर अड़े हुए हो|

छोड़ो मित्र ! पुरानी डफली,
जीवन में परिवर्तन लाओ |
परंपरा से ऊंचे उठ कर,
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

जब तक घर मे धन संपति हो,
बने रहो प्रिय आज्ञाकारी |
पढो, लिखो, शादी करवा लो ,
फिर मानो यह बात हमारी |

माता पिता से काट कनेक्शन,
अपना दड़बा अलग बसाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

करो प्रार्थना, हे प्रभु हमको,
पैसे की है सख़्त ज़रूरत |
अर्थ समस्या हल हो जाए,
शीघ्र निकालो ऐसी सूरत |

हिन्दी के हिमायती बन कर,
संस्थाओं से नेह जोड़िये |
किंतु आपसी बातचीत में,
अंग्रेजी की टांग तोड़िये |

इसे प्रयोगवाद कहते हैं,
समझो गहराई में जाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

कवि बनने की इच्छा हो तो,
यह भी कला बहुत मामूली |
नुस्खा बतलाता हूँ, लिख लो,
कविता क्या है, गाजर मूली |

कोश खोल कर रख लो आगे,
क्लिष्ट शब्द उसमें से चुन लो|
उन शब्दों का जाल बिछा कर,
चाहो जैसी कविता बुन लो |

श्रोता जिसका अर्थ समझ लें,
वह तो तुकबंदी है भाई |
जिसे स्वयं कवि समझ न पाए,
वह कविता है सबसे हाई |

इसी युक्ती से बनो महाकवि,
उसे "नई कविता" बतलाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

चलते चलते मेन रोड पर,
फिल्मी गाने गा सकते हो |
चौराहे पर खड़े खड़े तुम,
चाट पकोड़ी खा सकते हो |

बड़े चलो उन्नति के पथ पर,
रोक सके किस का बल बूता?
यों प्रसिद्ध हो जाओ जैसे,
भारत में बाटा का जूता |

नई सभ्यता, नई संस्कृति,
के नित चमत्कार दिखलाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

पिकनिक का जब मूड बने तो,
ताजमहल पर जा सकते हो |
शरद-पूर्णिमा दिखलाने को,
'उन्हें' साथ ले जा सकते हो |

वे देखें जिस समय चंद्रमा,
तब तुम निरखो सुघर चाँदनी |
फिर दोनों मिल कर के गाओ,
मधुर स्वरों में मधुर रागिनी |
( तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी ..)

आलू छोला, कोका-कोला,
'उनका' भोग लगा कर पाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ|
-काका हाथरसी

Wednesday, October 9, 2019

"एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?" ...शैल चतुर्वेदी

शैल चतुर्वेदी
29 जून 1936 -29 अक्टूबर 2007
आप हिंदी के प्रसिद्ध हास्य कवि, गीतकार
और बॉलीवुड के चरित्र अभिनेता थे। 
प्रस्तुत है उनकी एक व्यंग्य कविता

हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ा
और कहा, "एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?"
तो बोला, "पहले खाना खिलाओ।"
खाना खिलाया तो बोला, "पान खिलाओ।"
पान खिलाया तो बोला, "खाना बहुत बढ़िया था
उसका मज़ा मिट्टी में मत मिलाओ।
अपन ख़ुद ही देश की छाती पर जीते-जागते व्यंग्य हैं
हमें व्यंग्य मत सुनाओ
जो जन-सेवा के नाम पर ऐश करता रहा
और हमें बेरोज़गारी का रोजगार देकर
कुर्सी को कैश करता रहा।

व्यंग्य उस अफ़सर को सुनाओ
जो हिन्दी के प्रचार की डफली बजाता रहा
और अपनी औलाद को अंग्रेज़ी का पाठ पढ़ाता रहा।
व्यंग्य उस सिपाही को सुनाओ
जो भ्रष्टाचार को अपना अधिकार मानता रहा
और झूठी गवाही को पुलिस का संस्कार मानता रहा।
व्यंग्य उस डॉक्टर को सुनाओ
जो पचास रूपये फ़ीस के लेकर
मलेरिया को टी०बी० बतलाता रहा
और नर्स को अपनी बीबी बतलाता रहा।

व्यंग्य उस फ़िल्मकार को सुनाओ
जो फ़िल्म में से इल्म घटाता रहा
और संस्कृति के कपड़े उतार कर सेंसर को पटाता रहा।
व्यंग्य उस सास को सुनाओ
जिसने बेटी जैसी बहू को ज्वाला का उपहार दिया
और व्यंग्य उस वासना के कीड़े को सुनाओ
जिसने अपनी भूख मिटाने के लिए
नारी को बाज़ार दिया।
व्यंग्य उस श्रोता को सुनाओ
जो गीत की हर पंक्ति पर बोर-बोर करता रहा
और बकवास को बढ़ावा देने के लिए
वंस मोर करता रहा।

व्यंग्य उस व्यंग्यकार को सुनाओ
जो अर्थ को अनर्थ में बदलने के लिए
वज़नदार लिफ़ाफ़े की मांग करता रहा
और अपना उल्लू सीधा करने के लिए
व्यंग्य को विकलांग करता रहा।

और जो व्यंग्य स्वयं ही अन्धा, लूला और लंगड़ा हो
तीर नहीं बन सकता
आज का व्यंग्यकार भले ही "शैल चतुर्वेदी" हो जाए
'कबीर' नहीं बन सकता।
- शैल चतुर्वेदी

Tuesday, October 8, 2019

खट्‍टी चटनी-जैसी माँ ...निदा फ़ाजली

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्‍टी चटनी-जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा, फुकनी-जैसी माँ

बान की खुरीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थक‍ी दोपहरी-जैसी माँ

चिडि़यों की चहकार में गूँज़े
राधा-मोहन, अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी-जैसी माँ

बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी-थोड़ी-सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी -जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा, माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की-जैसी माँ। 
- निदा फ़ाजली

Monday, October 7, 2019

"मै जा रहा हूँ।"


एक सेठ  से लक्ष्मी  जी  रूठ गई ।
जाते वक्त  बोली मैं जा रही  हूँ...
और... मेरी जगह  नुकसान आ रहा है ।
तैयार  हो जाओ।

लेकिन  मै तुम्हे अंतिम भेट जरूर देना चाहती हूँ।
मांगो जो भी इच्छा  हो।

सेठ बहुत समझदार  था।
उसने विनती  की नुकसान आए तो आने  दो ।

लेकिन  उससे कहना की मेरे परिवार  में आपसी  प्रेम  बना रहे।

 बस मेरी यही इच्छा  है।

 लक्ष्मी  जी  ने  तथास्तु  कहा।

 कुछ दिन के बाद :-

सेठ की सबसे छोटी  बहू  खिचड़ी बना रही थी।

उसने नमक आदि  डाला  और अन्य  काम  करने लगी।

तब दूसरे  लड़के की  बहू आई और उसने भी बिना चखे नमक डाला और चली गई।

इसी प्रकार  तीसरी, चौथी  बहुएं  आई और नमक डालकर  चली गई ।

उनकी सास ने भी ऐसा किया।
शाम  को सबसे पहले सेठ  आया।
पहला निवाला  मुह में लिया।
देखा बहुत ज्यादा  नमक  है।
लेकिन  वह समझ गया  नुकसान (हानि) आ चुका है।

चुपचाप खिचड़ी खाई और चला गया
इसके बाद  बड़े बेटे का नम्बर आया।

पहला निवाला  मुह में लिया।
पूछा पिता जी  ने खाना खा लिया क्या कहा उन्होंने ?

सभी ने उत्तर दिया :- " हाँ खा लिया, कुछ नही बोले।"

अब लड़के ने सोचा जब पिता जी ही कुछ  नही  बोले तो मै भी चुपचाप खा लेता हूँ।

इस प्रकार घर के अन्य  सदस्य  एक -एक आए।

पहले वालो के बारे में पूछते और.. चुपचाप खाना खा कर चले गए।

रात  को नुकसान (हानि) हाथ जोड़कर

सेठ से कहने लगा : -  "मै जा रहा हूँ।"

सेठ ने पूछा :- क्यों ?

तब नुकसान (हानि ) कहता है, " आप लोग एक किलो तो नमक खा गए  ।

लेकिन  बिलकुल  भी  झगड़ा  नही हुआ। मेरा यहाँ कोई काम नहीं।"
जहाँ प्रेम है , वहाँ लक्ष्मी  का वास है।

अच्छे के साथ अच्छे बनें ,
पर  बुरे के  साथ बुरे नहीं।

Sunday, October 6, 2019

उसको देखूँ मैं बंद आँखों से ...मनु भारद्वाज 'मनु'

नाम से भी मेरे नफ़रत है उसे
मुझसे इस दर्जा मुहब्बत है उसे

मुझको जीने भी नहीं देता वो
मेरे मरने की भी हसरत है उसे

रूठ जाऊँ तो मानता है बहुत
फिर भी तड़पाने की आदत है उसे

उसको देखूँ मैं बंद आँखों से
गैरमुमकिन सी ये चाहत है उसे

जब भी चाहे वो सता लेता है
ज़ुल्म ढाने की इजाज़त है उसे

वो 'मनु' पे है जाँ-निसार बहुत
और 'मनु' से ही हिक़ारत है उसे

-मनु भारद्वाज 'मनु'

Saturday, October 5, 2019

पहले चला गया कोई.... अंसार कम्बरी

आता नहीं क़रार दिले-बेक़रार में
इक दिल है वो भी अपने कहाँ इख़्तियार में

वो मुब्तला है ग़म में, ख़ुशी में या प्यार में
इक दिल है वो भी अपने कहाँ इख़्तियार में

जाया करेंगे वक़्त नहीं इंतज़ार में
धोखे मिले है हमको बहुत ऐतबार में

होता है अगर खेल कभी प्यार-प्यार में
फिर जीत में कहाँ है मज़ा, है जो हार में

गुम हो गयी सदा मेरी चीख़ो-पुकार में
फिर मुझको डूबना ही पड़ा बीच धार में

पूछा जो हमने हाल जवानों ने ये कहा
हैं डिग्रियाँ हमारी ग़मे-रोज़गार में

पहले चला गया कोई जायेगा बाद में
सच है यही लगे हैं यहाँ सब क़तार में

जाओगे कहा बचके भला उससे ‘क़म्बरी’
हर शय है इस जहान की उसके हिसार में
-अंसार कम्बरी

Friday, October 4, 2019

कारगाहे हस्ती में यूँ फंसी है 'ज़ोया'....VenuS "ज़ोया"


तौक़ीर ओ ऐतबार ओ इस्मत हो या हो 'माँ का प्यार'
ये वो दौलत है , जो फिर ना मिले उम्र भर कमाने से

ए दिल चल के ढूंढें नया और कोई ज़ख़्म  ज़माने में 
उकताहट सी हो गयी है मुझे अब  इक ही फ़साने से


अब तो वो याद भी नही के जलाए दिल ओ जाँ मेरी  
फितरती दर्द ही रह-रह के आना चाहता है बहाने से

सुना है कुछ ख़ास तू भी नही नाम - ए - आमाल में 
होता गर , तुझे फुर्सत मिलती कभी मुझे सताने से

तजस्सुम-ओ -कारगाहे हस्ती में यूँ फंसी है 'ज़ोया'
कई दिनों से वक़्त ही नही शिकायत का ज़माने से !!


--  VenuS "ज़ोया"